Art of Public Speaking in Hindi – Public Speaking पर मेरा एक अनुभव और कुछ tips – मैने पढा कि Public Speaking में 70% लोगो को डर लगता है … वाकई डर और धबराहट तो होती है पर ऐसा क्या करें कि न डर लगे न धबराहट हो … एक मेरा अनुभव जिसमें मुझे भी डर लगा था … किस बात का डर था वो …
Art of Public Speaking in Hindi
पब्लिक स्पीकिंग एक कला है. पर अकसर डर भी लगता है तो कैसे कैसे डर होते हैं और हम कैसे डर दूर भगाएं , How do you get rid of the fear of public speaking , How can I be a good public speaker….
कैसी हो Public Speaking
कुछ समय पहले lecture के लिए एक सेमिनार मे जाना हुआ. स्वाभाविक है कुछ पेट में butterflies, टेंशन और धबराहट थी. मुझे lunch के बाद का समय मिला था. इसलिए लंच का मन ही नही किया. लंच टाईम में मैं उसी रुम में आ गई जहां मुझे बोलना था.
दो बजे और लगभग कक्ष पूरा भर गया. मेरा नम्बर सात वक्ताओं के बाद का था और सभी को दस दस मिनट मिले. वक्ता एक एक करके बोले जा रहे थे और यकीन मानिए इक्का दुक्का को छोड कर बस बोले जा रहे थे. उन्हें दर्शकों से कोई लेना देना नही था
इतना ही नही मेरे साथ बैठी महिला के खर्राटे मैं आराम से सुन पा रही थी.
कोई मोबाईल पर लगा था तो कोई टेक लगा कर आराम से AC hall मे उंघ रहा था शायद सभी को दिन में भोजन के बाद सोने की आदत होगी. मैं सोच रही थी कि मेरी मेहनत तो बेकार ही जाएगी जब कोई सुनने वाला ही न हो … हां सुनने वाले तीन लोग तो जरुर थे पहली जो स्टेज पर आने का निमंत्रण दे रहीं थीं. दूसरे जो स्टेज पर थे और तीसरे जो certificate या मोमेंटो आदि देने की तैयारी कर रहे थे.
वक्ता के बोलने के बाद ताली भी ऐसे बजा रहे थे खुद की ताली की आवाज अपने ही कानों को न सुनाई दे. बस एक्शन ही था ताली का.….
और मेरा नम्बर भी आ गया. मेरे साथ बैठी खर्राटे लेती महिला भी उठ चुकी थी और उनकी नजरे दरवाजे की तरफ थी कि कब चाय आए और वो फ्रेश हो जाए. खैर.
मैने स्टेज पर जाकर अभिवादन किया और लोगो से पूछा कि स्टेज पर यहां खडे होकर वक्ता को एक बात से बहुत डर लगता है. क्या आप बता सकते हैं? दर्शक थोडे उत्सुक हो गए . किसी ने कहा कि भूलने का डर तो किसी ने कहा अपना पेपर ही न लाए हो
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