Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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June 26, 2015 By Monica Gupta

बच्चों की छोटी कहानी – जब पौधे को हुई फूड पॉयजनिंग

बच्चों की छोटी कहानी – जब पौधे को हुई फूड पॉयजनिंग  –  क्या होता है जब पौधे को हो जाती है फूड पॉयजनिंग .., एक छोटे से बच्चे की मासूम गलती की वजह से पौधे को हो जाती है फूड पॉयजनिंग.. आखिर कैसे होती है … क्या पौधा बच जाता है या मर जाता है बच्चों की प्यारी और मजेदार मेरी लिखी कहानी सुनिए … ये कहानी बहुत साल पहले बाल भारती पत्रिका में भी प्रकाशित हुई थी…

बच्चों की छोटी कहानी – जब पौधे को हुई फूड पॉयजनिंग

मैं हूं नोनू। चौथी क्लास में पढ़ता हूं। पिछले कुछ दिनों से मैं उदास हूं। असल में, बात यह हुर्इ कि दस दिन पहले मेरा जन्मदिन था। पापा ने बहुत सुंदर-सा पौधा उपहार में दिया और मुझसे कहा कि इस पौधे की जिम्मेदारी मेरी है; अगर यह पौधा पूरे साल बढ़ता रहा तो वो मेरे अगले जन्मदिन पर मुझे दो पहियों वाली साइकिल दिलवाएंगे।

monica gupta                                                                    ( Published in Bal Bharti)   बाल भारती में प्रकाशित कहानी

plant photo

Photo by Tambako the Jaguar

मैं बहुत खुश था। हमारे घर में पहले से ही ढ़ेर सारे पौधे हैं। मम्मी उनकी देखभाल करती रहती है। मैं मम्मी को देखता हूं। बस, पानी ही तो देना होता है। इसमें क्या मुशिकल काम है। मेरी साइकिल तो पक्की ही समझो। पौधा आने के बाद मैं बार-बार उसमें पानी देता ताकि जल्दी-जल्दी बड़ा हो। मेरे दोस्त विक्रम, सन्नी, मीशू और सामी भी पौधा देखने आए और उन्होंने अपने सुझाव दिए कि पौधे को जल्दी से बड़ा कैसे किया जाता सकता है।

इस बात को लगभग दस दिन हो गए हैं लेकिन आज पता नहीं क्यों मुझे मेरा पौधा चुप-चुप सा लग रहा था। मैंने मम्मी को आवाज देकर बुलाया और पौधा देखने को कहा। मम्मी ने प्यार से मेरे बालों में हाथ फेरा और गमले के पास बैठकर उसे ध्यान से देखने लगीं- ठीक वैसे ही जैसे डाक्टर मरीज को देखता है। मम्मी ने मुझसे पूछा कि पौधे को पानी कब-कब दिया। मैंने बताया कि दिन में चार-पांच बार पानी दिया और दो दिन पहले ही सर्फ के पानी से धोया था और उसी दिन से बार-बार फिनाइल भी ड़ाल रहा हूं ताकि आस-पास मच्छर ना आएं।

मम्मी मेरी बात सुनकर घबरा गर्इ और बोली, अरे! तुम्हारे पौधे को तो फूड पायज़निंग हो गर्इ है। मुझे समझ में तो कुछ नहीं आया पर इतना पता था कि कुछ बहुत बुरा हुआ है। मैं बहुत उदास हो गया। मम्मी ने बताया कि इसे बचाने के लिए इसका तुरन्त आप्रेशन करना पड़ेगा। मम्मी फटाफट खुरपी और घर के बाहर से ताजी मिट्टी ले आर्इं। उन्होंने एक खाली गमले में  भरी और उस पौधे को गमले से बहुत ध्यान से निकालकर नए गमले में आराम से खड़ा करके दबा दिया।

monica gupta

अब मेरा पौधा नई मिट्टी और नए गमले में खड़ा था पर वह अब भी चुप था। नए गमले में धीरे-धीरे पानी डालते हुए मम्मी ने कहा कि तुम्हारे पौधे का आप्रेशन तो हो गया है पर अभी भी कुछ नही कहा जा सकता है। अगले तीन दिन में ही पता लग पाएगा कि पौधा ठीक है या मर गया है। मैं बुरी तरह से डर गया। मम्मी मुझे गोद में उठाकर रसोई में ले गई और मुझे ब्रैड देते हुए बोली कि पौधे को फिनाइल क्यों दी?

मैंने बताया कि मेरे दोस्त विक्रम ने बताया था कि अगर पौधे को सर्फ के पानी से नहलाओगे तो वह साफ-सुथरा हो जाएगा और फिनाइल डालेंगे तो कभी कीड़ा नहीं लगेगा, आसपास मच्छर भी नहीं आएगा। इससे पौधा जल्दी-जल्दी बड़ा होगा।

मैंने मम्मी से डरते-डरते पूछा कि यह फूड पॉयजनिंग…… क्या होती है?? मम्मी ने बताया कि फूड मतलब खाना और पायज़न मतलब जहर…..। यानि खाने में जहर। पौधे को खाने में फिनाइल, सर्फ देकर जहर देने का ही काम किया है। पौधे की जड़ों में अगर यह जहर चला गया तो पौधा मर जाएगा और जड़ों में ज्यादा जहर नहीं फैला है तो शायद पौधा बच जाए। अब तो बस भगवान जी की दया चाहिए।

मैं भागकर मंदिर में गया और वहां से अगरबत्ती और माचिस ले आया। मम्मी ने गमले के पास अगरबत्ती जला दी। अब मैंने मम्मी को ध्यान से देखना शुरू किया कि वो पौधों की देखभाल कैसे करती हैं। कितनी बार पानी देती हूं। इन दो-तीन दिनों में मैंने भीगी हुई दाल और पानी ही पौधे को दिया ताकि उसमे जल्दी-जल्दी ताकत आए। मेरे वाले पौधे के नीचे के तीन-चार पत्ते बिल्कुल सूख चुके थे। उधर विक्रम से मैंने कुट्टी कर ली थी क्योंकि उसकी वजह से ही मेरे पौधे का ये हाल हुआ था।
मुझे कल सुबह का इंतजार है क्योंकि जब मैं सोकर उठूंगा तो पूरे 72 घंटे हो जाएंगे। हे भगवान, मेरा पौधा ठीक हो जाए।
अगली सुबह, मैं जब उठा और गमले के पास भागा तो मम्मी जड़ से पौधे को निकाल रही थी और मुझे देखकर कहने लगीं कि वो पौधे को बचा नहीं पाई। मैं रोने लगा। मुझे साइकिल न आने का इतना दुख नहीं था जितना कि पौधे का इस तरह मर जाना था। मैं जोर-जोर से रोने लगा।

तभी मम्मी की आवाज मेरे कानों में पड़ी। अरे…….मैं तो सपना देख रहा था। मम्मी मुझे खुशी-खुशी बता रही थी कि आपरेशन सफल हुआ। उस पौधे में एक नया पत्ता आ गया है। यानि अब पौधा बिल्कुल ठीक है। वह खतरे से बाहर है। मैं भागकर पौधे के पास गया और बहुत ध्यान से देखने पर एक छोटा-सा पत्ता दिखाई दिया।

सुबह – सुबह की सूरज की रोशनी पौधे पर पड़ रही थी। वह हवा में आगे-पीछे झूल रहा था। ऐसा लग रहा था मानो खुशी में झूलता हुआ वह कह रहा हो कि मैं बिल्कुल ठीक हूं…

अब मेरा ख्याल रखना। मैं भागकर मंदिर से अगरबत्ती और माचिस ले आया।

मम्मी ने मुझे प्यार किया और भगवान का नाम लेकर अगरबत्ती जला दी। मेरी डाक्टर मम्मी ने पौधे की बीमारी ठीक कर दी। अब मैं जान गया था कि पौधे की देखभाल कैसे की जाती है। मैं खुशी-खुशी स्कूल जाने के लिए तैयार हो गया क्योंकि दोस्तों को भी तो बताना था।

जब पौधे को हुई फूड पॉयजनिंग –  बताना कि ये कहानी  कैसी लगी….

monica gupta

बच्चों की मनोरंजक कहानी – कहानी घर घर की – Monica Gupta

बच्चों की मनोरंजक कहानी – कहानी घर घर की – हरियाणा साहित्य अकादमी की ओर से 2015 का “बाल साहित्य पुरस्कार” मेरी लिखी किताब “वो तीस दिन” को मिला. बाल साहित्य बच्चों की मनोरंजक कहानी – कहानी घर घर की – Monica Gupta

June 26, 2015 By Monica Gupta

बाल कहानी- भईया

बाल कहानी- भईया

बाल कहानी- भईया – कहानियां पढनी या सुननी हम सभी को अच्छी लगती हैं कुछ कहानियां मनोरंजन करती हैं तो कुछ कहानियां बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती हैं तो कुछ कहानियां रिश्तों की नींव  को मजबूत बनाती हैं … मेरी ये कहानी भईया दो भाईयों के प्यारे से रिश्ते की  कहानी है …

बाल कहानी- भईया

दोपहर का एक बजा है। मैं चिलचलाती धूप में स्कूल से लौट रहा हूं। मेरा नाम मनन है और आठवीं क्लास में पढ़ता हूं। मेरा परिवार मध्यवर्गीय परिवारों में गिना जाता है। हमारे पास अपनी कार, घर और सुविधा का सामान है। मम्मी-पापा दोनों काम पर जाते हैं। एक भार्इ है जो कुछ दिनों पहले होस्टल चला गया है और अब उसे वहीं रह कर पढ़ार्इ करनी होगी…

 

बाल कहानी- भईया

बाल कहानी- भईया

अचानक साइकिल चलते-चलते भारी हो गर्इ। मैंने रूक कर देखा तो पिछला टायर पंक्चर हो गया था। पैदल ही साइकिल को लेकर चलने लगा। कुछ ही दूरी पर साइकिल की दुकान थी. पहले पहल तो मैं  साईकिल पर भईया  के पीछे बैठकर स्कूल जाया करता  था। भर्इया साइकिल चलाते थे। लेकिन जबसे मेरे दोस्तों ने मुझे चिढ़ाना शुरू किया तो मैंने साईकिल छोड कर  स्कूल बस लगवा ली थी।

भर्इया साइकिल पर जाते और मैं बस से। दोनों अलग-अलग आते और अलग-अलग जाते। आपस में कामिपीटिशन करते कि कौन पहले घर पहुंचता है। घर पहुंचकर रिमोट हथियाना होता था। फिर शुरू होता था लड़ार्इ का दौर। मम्मी-पापा समझा-समझाकर हार जाते।
हमारे लड़ने-मनाने-रूठने का क्रम जारी रहता। भर्इया के होस्टल जाने के बाद मैंने बस छोड़कर साइकिल से जाना शुरू कर दिया था। अचानक ध्यान टूटा तो देखा सामने साइकिल वाले की दुकान आ गर्इ थी। मैंने उसे पंक्चर देखने को कहा और हैंडिल से पानी की बोतल निकालकर उसे पीने लगा।

अब कितने आराम से पानी पी रहा हूं। पहले भर्इया यह बोतल ले लेता था और पीते-पीते सोचने लगा कि अब कितने आराम से पी रहा हूं। पहले भर्इया यह बोतल ले लेता था तो घर में तूफान खड़ा हो जाता। लेकिन अब लड़ने वाला कोर्इ नहीं है। न चाहते हुए भी मेरी आंखें गीली हो गर्इं। जल्दी से आंखें पोंछी। स्कूल से बच्चे घर जा रहे थे। कुछ के भार्इ उन्हें लेकर जा रहे थे, तो किसी की मम्मी स्कूटी पर, वहीं कुछ भार्इ-बहिन पैदल बातें करते जा रहे थे। मैं इस भीड़ में स्वयं को अकेला महसूस कर रहा था।
भर्इया जब होस्टल जा रहे थे तो मैं कितना खुश था कि अब तो पूरे कमरे, कम्प्यूटर रिमोट, कुर्सी-मेज, अलमारी और साइकिल पर सिर्फ मेरा अधिकार होगा। कोर्इ रोकने-टोकने वाला नहीं होगा। तभी साइकिल वाले ने टोका, कोर्इ पंक्चर नही है। हवा भर दी है। सच पूछो तो अगर भर्इया घर पर होता तो सारा इल्जाम मैं उसी पर लगाता कि भर्इया ने ही साइकिल की हवा निकाली होगी।
खैर, मैं दुबारा साइकिल पर सवार होकर घर चल पड़ा। मम्मी दरवाजे पर खडी इंतजार कर रही थी। मैंने मम्मी को बताया कि साइकिल की हवा निकल गर्इ थी, इसलिए देर हो गर्इ। कमरे में आकर मैं कपड़े बदलने लगा। कमरा साफ-सुथरा था। सब कुछ व्यवसिथत। मम्मी ने खाना लगा दिया। टीवी चलाते हुए मम्मी ने कहा, तुम्हारा मनपसंद कार्टून चैनल लगा दूं। मैंने कहा, कुछ भी लगा दो मेरा मन नहीं है। मम्मी हैरान थी कि कहां मैं सारा दिन लड़ार्इ करके अपनी पसंद का चैनल लगा लेता था और अब देखने का मन नहीं है।

होस्टल से भर्इया जब पहली बार घर आया तो मैंने महसूस किया कि वो कुछ कमजोर सा हो गया है। पर उसे कुछ नहीं कहा। उसे तो मैं वैसे ही चिढ़ाता रहा और महसूस नहीं होने दिया कि मैं बोर भी होता हूं और मुझे उसकी याद आती है। घर पहले की तरह लड़ार्इ से गूंज उठा। वही सुबह बाथरूम पहले जाने की होड़, फिर नाश्ते में पहला परांठा किसका होगा, इस बात पर तकरार……। दो-तीन दिन रहकर भर्इया चला गया। मैं उसे बाय कहने के लिए भी नहीं उठा। हां, अपनी घड़ी में अलार्म जरूर लगा दिया था ताकि वो समय से उठ जाए और उसकी बस न छूटे।
मैं जानता हूं कि भर्इया पढ़ार्इ के मामले में बहुत सनकी हैं। अभी तक सभी कक्षाओं में वह प्रथम रहता आया है। आधा नम्बर भी कट जाता था तो भर्इया घर आकर खाना नहीं खाता था। भर्इया के होस्टल पहुंच जाने पर फोन आया तो मैंने बात नहीं की। मम्मी ने सोचा होगा कि अपने भर्इया से आखिर मैं बात क्यों नहीं कर रहा पर सच पूछो तो मुझे भी नही पता कि भर्इया के जाने से मैं खुश हूं या उदास। कभी-कभी भर्इया का फोन मैं उठाता हूं तो रिसीवर मम्मी या पापा को पकड़ा देता हूं। भर्इया होस्टल में बीमार भी हो गया था, पर मैंने उसकी तबियत नहीं पूछी। मुझे याद है पहले जब मुझे बुखार होता था तो रात को भर्इया मेरा माथा टटोलता कि बुखार ज्यादा तो नहीं हो गया।
खाना खाकर मैं पढ़ने बैठ गया। बहुत देर से एक सवाल हल नहीं हो पा रहा था। अब किसी पर गुस्सा भी नहीं कर सकता कि भर्इया पढ़ने नहीं दे रहा। हालांकि भर्इया चुटकियों में सवाल हल कर देता था। मैं किताब बंद करके लेट गया। मम्मी भी मेरे पास आकर लेट गर्इ। मम्मी की आंखों में मैंने बहुत बार आंसू देखे हैं, पर कभी कुछ नहीं बोला…….।
मम्मी ने अब काम पर जाना कम कर दिया है। शायद मेरी वजह से कि कहीं मुझे अकेलापन खलने न लग जाए। पापा हमेशा की तरह काम में व्यस्त रहतें हैं। हां, मेरे लिए खाना खाते समय मुझसे बातें करते रहते हैं। पर मेरा ध्यान उस समय टेलीविज़न में ही होता है।

भर्इया की पांच साल की होस्टल की पढ़ार्इ है। चाहे मैं बाहर से लड़ाका या गुस्सैल या जैसा भी हूं, पर मेरा ध्यान हरदम मेरे भर्इया में रहता है। शायद मम्मी-पापा इस बात को नहीं समझेंगे। मेरे दिल से सारी शुभकामनाएं मेरे भर्इया को हैं। वो अब भी हर साल प्रथम आए और जो बनना चाहता है वो बने। लेकिन मुझे भर्इया की याद आ रही है, भर्इया घर कब आएंगे……..। मैं आज भी अपने मुंह से कुछ नहीं कहूंगा…..। और मैं दुबारा उठकर सवाल हल करने में जुट गया कि भर्इया हल कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं………….।

बाल कहानी- भईया

ये कहानी बाल कहानी- भईया दिल के बहुत नजदीक है पता नही लिखते हुए कितनी बार आंंखे भर आई और इसे जब भी पढती हूं तो भी आखें नम हो जाती है … !!! सच बताना कि आपको कैसी लगी???

बाल कहानी- भईया

और भी पढिए और सुनिए …

रोचक बाल कहानी – जब पापा ने बनाए मटर के चावल

 

ऑडियो- कहानी – पसंद नापसंद (Audio) – Monica Gupta

क्लिक करिए और सुनिए महिला की सोच और उसके विचारों का ताना बाना बुनती खूबसूरत सी छोटी सी कहानी ऑडियो- कहानी – पसंद नापसंद (Audio) नेट, Mobile और सोशल मीडिया का बहुत धन्यवाद क्योकि आज इसी की वजह से हम अपने ब्लॉग पर न सिर्फ लिख सकते हैं बल्कि अपनी आवाज के जरिए भी आप सभी तक पहुंच भी सकते हैं… ऑडियो- कहानी – पसंद नापसंद (Audio) – Monica Gupta

 

 

June 25, 2015 By Monica Gupta

सबसे प्यारा तोहफा

(बाल कहानी)   सबसे प्यारा तोहफा

 

mother and daughter photo

Photo by simpleinsomnia

मैं हूं मणि। अभी कल ही दस साल की पूरी हुर्इ हूं। यानि मेरा कल हैप्पी बर्थ डे था। सप्ताह भर पहले से ही मेरी योजनाएं बन रही थी कि मैं जन्मदिन वाले दिन क्या पहनूंगी, क्या-क्या बनवाऊंगी मम्मी से…… मम्मी का नाम लेते ही मेरा मन फिर उदास हो गया था। आप जानना चाहेंगे कि क्यों मेरा मन उदास हो गया! चलो, कोर्इ और बात करने से पहले मैं इसी बारे में आपसे बात करती हूं।

असल में, पता है क्या बात है! मैं, मम्मी को बहुत प्यार करती हूं , उनका कहना मानती हूं, जो घर में कभी मेहमान आए तो मम्मी की मदद करती हूं , लेकिन पता नही हमेशा मम्मी की ड़ांट ही खानी पड़ती है। ना जाने मम्मी मुझ से क्यों नाराज-नाराज उदास सी रहती हैं। मेरी हर बात में कमी निकालती हैं। कभी भी मेरी तारीफ नहीं करती। पापा की बात ही क्या, वो तो महीने में 20 दिन टूर पर रहते हैं, जब आते हैं तो उनका सोशल सर्किल ही इतना बड़ा है कि उसमें व्यस्त रहते हैं।

अभी मेरे जन्मदिन के आने से पहले मैंने मम्मी को अपनी सहेलियों की लिस्ट थमा दी तो मम्मी ने कोर्इ खुशी नहीं दिखार्इ। मैं कुछ नहीं बोली। जन्मदिन को आने में चार दिन बाकी थे।
मैंने मम्मी को कहा कि अपनी सहेलियों को बुलाने का क्या समय दूं ? मम्मी ने कहा कि अभी कल बात करेंगे, आज शाम तेरी नानीजी आ रही हैं।

मैं हैरान……! नानीजी की सूरत मैंने एलबम में ही देखी है। जब मैं दस दिन की थी तब मुझे गोद में लिए…. मुझे नहलाते हुए….. मेरी मालिश करने की ढ़ेरों तस्वीरें हैं…… मैं बहुत खुश होती थी देख कर…… और आज….. इतने सालों बाद वो आ रही हैं….. वो भी मेरे जन्मदिन पर……मैं तो खुशी के मारे दोहरी हुर्इ जा रही थी।

शाम हुर्इ……… नानीजी आ गर्इं। हाथों, गालों पर बेशुमार झुर्रियां……. शायद उम्र का ही तकाजा था। मैं नानीजी से लिपट गर्इ। उन्होंने मुझे प्यारा सा गुड्डा और सौ रूपये उपहार स्वरूप दिए। मम्मी काम में लगी रहीं। मैंने एक बात पर ध्यान देना शुरू किया कि मेरी नानीजी मम्मी को बात-बात पर टोक रहीं थी।

दोपहर के खाने में भी उन्होंने ढ़ेरों नुक्स निकाल दिए। चादर ठीक से ना धुलने पर लम्बा सा लेक्चर दे डाला। मम्मी चुपचाप अपने काम में लगी रहीं। मुझे कुछ अच्छा महसूस नहीं हो रहा था। मन बहुत बेचैन था कि नानी आखिर मम्मी से ऐसा बर्ताव क्यों कर रही है? मेरे बाल-सुलभ मन में एक बात यह आ रही थी कि मम्मी की मम्मी यानि मेरी नानी अपनी बेटी के साथ ऐसा व्यवहार करती हैं, तो कभी ऐसा तो नहीं है कि इसलिए मेरी मेरी मम्मी भी मेरे साथ यही व्यवहार करती हों। पर मैंने मन में सोचा कि मैं तो मम्मी के साथ इतनी अच्छी तरह पेश आती हूं, तो यह वजह तो हो ही नहीं सकती। समय ऐसे ही बीतता रहा। मैं अपने काम में व्यसत रही पर सब कुछ देखती समझती रही।

जन्मदिन से एक दिन पहले मम्मी कपड़े प्रेस करते वक्त बुदबुदा रही थी कि मम्मी हमेशा से ही ड़ांटती आर्इ हैं। अगर मैं लड़का नहीं तो इसमें मेरा क्या दोष……..। यह कह कर मम्मी आंसू पोंछने लगी……
मैं मम्मी के पीछे ही खड़ी थी पर मम्मी को पता ना था। नानीजी बाजार शापिंग के लिए गर्इ हुर्इ थी। मैंने प्रेस का स्विच बंद किया और मम्मी का हाथ खींच कर अपने कमरे में ले गर्इ। मम्मी ने मुझे उस समय कुछ नहीं कहा। मैंने मम्मी के माथे पर प्यार किया। उस समय मेरी आवाज भी थोड़ी भर्रा गर्इ थी। मम्मी, क्या हुआ! मैंने बहुत प्यार से पूछा। मम्मी ने किसी छोटे से आज्ञाकारी बच्चे के समान ना की मुद्रा में गर्दन हिला दी। मैंने पूछा, आप भी मुझे इसलिए प्यार नहीं करती ना, क्योंकि मैं लड़की हूं। मम्मी ने यह सुनते ही मेरे मुंह पर हाथ रख दिया और आंखों से आंसुओं की बरसात होने लगी। मम्मी बोली, बचपन से ही मैं यही सुनती आर्इ हूं। मेरी मां हमे मुझे ही कोसती थी। फिर जब तू हुर्इ तो मुझे और अपमान झेलना पड़ा। मैंने कहा, मां, क्या मैंने आपकी कभी ऐसा महसूस होने दिया कि मैं लड़की हूं। साइकिल चला कर बाजार के सारे काम करके लाती हूं। रेडि़यो ठीक कर देती हूं। गैराज से गाड़ी तक भी बाहर खड़ी कर देती हूं। फिर आप ऐसा क्यों सोचती हैं? नानी की बात ठीक थी। उस समय जमाना और था। अब जमाना बदल गया है। आज के समय में लड़कियां बहुत कम अनुपात में रह गर्इ हैं। बलिक आज के समय में तो लड़की होने पर आपको गर्व होना चाहिए। मम्मी चुपचाप सब बातें सुन रही थी।
मम्मी, मैं आपको और पापा को बहुत प्यार करती हूं और मैं चाहती हूं कि आप भी मुझे उतना ही प्यार दें।

मम्मी ने मुझे गले से लगा लिया और बोली, कर्इ बार मैं भी यही सोचती थी कि मैं तुम्हें खूब प्यार करूं, पर फिर सोचती थी कि जब मुझे अपनी मम्मी से प्यार नहीं मिला तो मैं तुम्हें प्यार क्यों दूं। तुम्हें मैं वही देने लगी जो मुझे अपने घर से मिला। लेकिन मैं वाकर्इ में गलत थी। मेरी प्यारी बच्ची…..मुझे माफ कर दे……! इतने में नानीजी की आवाज आर्इ ओ……..मणि की मां…… दरवाजा तो खोल………मेरे दोनों हाथ भरें हैं…..! मम्मी और मैं दोनों मुस्कुरा दिए।

मम्मी मुझे भली प्रकार समझ चुकी थी। और मेरा जन्मदिन खूब धूमधाम से मनाया गया। नानीजी की अब मुझे परवाह नहीं थी। लेकिन उन्हें आदर-मान देने में मैंने कोर्इ कसर नहीं छोड़ी। नानीजी की आंखें भी खुली की खुली रह गर्इं, जब मेरी एक सहेली विडियो से हमारी पिक्चर बना रही थी और दूसरी फटाफट स्कूटी पर जाकर कोल्ड ड्रिंक्स ला रही थी।

मैं बहुत ही खुश थी। मुझे मम्मी का प्यार मिल गया था, जो कि मेरा सबसे बड़ा तोहफा था। जन्मदिन से अगले दिन पापा का टूर भी खत्म हो गया था। पापा दो दिन घर पर ही रहने वाले थे। पापा मेरे लिए बहुत ही सुंदर डाल लाए थे। जहां इतनी बड़ी, प्यारी गुडि़या देखकर मम्मी और मैं हैरान हो गए, वहीं नानीजी का मुंह बन गया कि गुड्डा ना ला सकता था क्या, जो गुडि़या ले आया।
लेकिन पापा हंसते हुए बोले कि इस घर में गुडि़या के लिए भी तो एक गुडि़या चाहिए। यह बात सुनते ही मम्मी तो शरमा गर्इ। पर मैं समझ गर्इ और अपनी सहेलियों को गुडि़या दिखाने भाग गर्इ।

तो कैसी लगी आपको सबसे प्यारा तोहफा कहानी … आप जरुर बताना 🙂

June 25, 2015 By Monica Gupta

Acting

children playing  photo

Photo by Christina Spicuzza

(बाल कहानी) Acting

टोटके हिचकी के

मैं हूँ मणि। वैसे तो मैं आठवीं कक्षा में पढ़ती हूँ। पर सब मुझे दादी अम्मा कहतें हैं। मैं सभी की मुसीबतें पल भर में भगादेती हूं या  फिर किसी ने शरारत से किसी के कपड़ों पर स्याही छिड़क दी या सार्इकिल स्टैंड़ से किसी ने सार्इकिल की हवा निकाल दी कर उसे गिरा दिया हो तो सभी सिर्फ मेरे पास भागे चले आते और मैं अपने काम में जुट जाती। वैसे यह सब मैंने अपनी मम्मी और दादी मां से सीखा है। हम संयुक्त परिवार में रहते हैं न इसलिए मैं सभी बातों का ध्यान रखती हूँ। मेरी दादी तो सुबह.शाम लोगों की परेशानिया ही दूर करती रहती है। घर में तो मेरा रोब नहीं चलता पर स्कूल में बड़ी स्मार्ट बनती हूँ। किसी की दोस्ती करवानी हो या फिर पक्की कुÍा, मैं सभी कामों में एकदम एक्सपर्ट हूँ।

एक बार की बात है। मैं, मीशू और नोनू खेल रहे थे। सन्नी तो खेल कर चला गया था। सामी अभी तक आया नहीं था। आकाश में बादल से आ गए इसलिए मैंने सोचा कि जल्दी घर चलतें हैं, हम पार्क से निकल ही रहे थे कि सामी आ गया। वो हमारा पड़ोसी है, पढ़ता तो मेरी कक्षा में है पर स्कूल दूसरा है। उस समय उसे हिचकी आ रही थी। वो खेलना चाह रहा था लेकिन मैंने मना कर दिया। उसने मुझसे कहा कि तुम तो ऐसे भाग रही हो जैसे काला कुत्ता देख लिया हो।

मैंने उससे कहा कि काला कुत्ता तो नहीं पर एक काली गाड़ी जरूर देखी है। सामी बोला. काली (हिचकी) कार। मैंने पूछा पहले तू बता कि हिचकी कैसे आ रही है। वो बोला घर के (हिचकी) बाहर चने वाला (हिचकी) खड़ा था उसमें (हिचकी) मसाला बहुत तेज था बस…. हिचकी (हिचकी) लग गर्इ (हिचकी) अब बताओ…….. (हिचकी) मैंने बोला हम अभी जब खेल रहे थे तो हमने देखा कि एक बहुत सुंदर लड़की रोती हुर्इ गाड़ी में बैठी है। मुझे लगा कि शायद वो तुम्हारी कक्षा की दीपा है। सामी बोला.दीपा…. (हिचकी) कटे हुए थे। मैंने कहा हां-हां। वो बोला कि दो काले कपड़़े पहने अंकल उसे गाड़ी में बैठा रहे थे, शायद उठा कर न ले जा रहे हों। सामी का मुंह खुला ही रह गया (हिचकी) तुम्हारा मतलब……………. किड़नैप। मैंने भी गर्दन हिला दी। वो उतावला हो उठा। बोला (हिचकी) चलो जल्दी चलते हैं (हिचकी) कहीं पुलिस की पहुंच से दूर हो गये तो…… मैंने भी जल्द बाजी दिखार्इ और पार्क के बाहर सामी के साथ मीशू और नोनू भी लपक लिए।

सामी ने मुझसे पूछा, तुम्हें पुलिस स्टेशन का पता है ? मैंने कहा हां.हां। चलो जल्दी चलें। सामी नाराज हो गया बोला दीपा किड़नैप हो गर्इ है और तू हँस रही है। मैंने हँसते हुए कहा बुद्धु। कोर्इ किड़नैप विड़नैप नहीं हुआ है बस……………. तेरी हिचकी रोकने का नाटक था। सामी हैरानी से खड़ा का खड़ा रह गया। मैंने कहा ये था…………… शाक टि्रटमेंट। जब हिचकी रोकनी हो तो ध्यान दूसरी ओर लगा देते हैं जिससे हिचकी रूक जाती है। अब माहौल थोड़ा हल्का हो गया था।

हम सब मिलकर हँसने लगे और सड़क पार करने लगे। सामी ने बताया कि यही चने वाला है पर इसके चने है बहुत स्वादिष्ट। हम चारों ने मिलकर चने खाए। सामी अभी तक हैरान था कि मैं कितनी बातूनी हूँ और  Acting भी अच्छी कर लेती हूँ। तभी मुझे उसमें मसाला इतनी तेज लगा कि मुझे ही हिचकी लग गर्इ। सामी, मीशू, नोनू हंसने लगे कि अब Acting बंद करो। लेकिन मैंने कहा कि मुझे (हिचकी) सचमुच हिचकी लग गर्इ (हिचकी) हैं। तभी सामी बोला कि मेरे पीछे काला कुत्ता खड़ा है। उसे पता था कि मैं काले कुत्ते से बहुत ड़रती हूँ पर मैंने कहा मुझे (हिचकी) मेरी (हिचकी) तू मजाक कर (हिचकी) रहा है ताकि मेरी हिचकी रूक जाए। हंसते-हंसते मैंने पीछे मुड़कर देखा तो मेरी सांस ऊपर की ऊपर अटकी रह गर्इ। यह सचमुच का शाक (झटका) था।

मेरी हिचकी का तो पता नहीं पर जो मैं वहां से दौड़ी मैंने सांस घर आकर ही लिया। मीशू, नोनू और सामी दूर खड़े मुझे देखकर हाथ हिला रहे थे और मैं दिल की धड़कनों को काबू में रखकर उन्हें बाय कर रही थी। वैसे एक बात बता दूं मेरी दादी और मम्मी कुत्तों से बिल्कुल नहीं डरती पर पता नहीं इन कुत्तों को देखकर मेरी घिग्घी क्याें बंध जाती है। अंदर पहुंची तो दादी किसी से बतिया रही थी। मैं भी दादी के साथ बैठकर उनकी बातों में हामी भरने लगी और यह सोचने लगी कि क्या बहाना लगाऊंगी कि मैं क्यों भागी ताकि मेरे दोस्तों के बीच कल मेरा मजाक ही न बन पाए।

तो नन्हें  दोस्तो.  कैसी लगी आपको  Acting   कहानी जरुर बताना 🙂

June 25, 2015 By Monica Gupta

काम ही काम

(बाल कहानी ) काम ही काम

मैं हूं गोलू। पता है अभी-अभी पांचवीं कक्षा में आया हूं। बाप रे….बहुत पढ़ार्इ है। स्कूल से वापिस आने के बाद बस…….पढ़ते रहो…….पढ़ते रहो……!! एक दिन बरसात बहुत तेज हो रही थी इसलिए मैं उस दिन स्कूल नहीं गया। उसी दिन हमारी टीचर ने गणित के दो पाठ पढ़ा दिए। अगले दिन स्कूल जाने पर पता चला तो बहुत दु:ख हुआ क्योंकि टीचर से पढ़े बिना गणित के पाठ को समझना बहुत कठिन था। मैं परेशान इसलिए हो गया था कि टीचर ने अगले दिन उसका टेस्ट लेना था। उधर पापा-मम्मी के साथ मुझे किसी अंकल की शादी में भी शामिल होना था। पर पढ़ार्इ की वजह से मैंने शादी में जाने सेे मना कर दिया क्योंकि मैंने मन ही मन ठान रखी थी कि वो सवाल तो मैं हल करके ही रहूंगा। मम्मी ने मुझे लालच दिया कि वहां फलूदा आर्इसक्रीम होगी, गोलगप्पे होंगे, पाव-भाजी होगी, पर मेरे मन में तो गणित के सवाल घूम रहे थे सो मैंने शादी में जाने से मना कर दिया।

मम्मी पहले तो मुझे साथ में जाने के लिए मनाती रही पर मेरे बार-बार मना करने पर तो गुस्सा ही हो गर्इ और गुस्से में बोली, ठीक है……..नहीं जाना तो मत जाओ। मम्मी दूसरे कमरे में तैयार होने लगी। पापा ने भी तैयार होना शुरू कर दिया। मैं सवाल हल करने में जुट गया। तभी मम्मी की आवाज आर्इ। वह बोल रही थी कि बार्इ आने वाली होगी। उसे कहना कि मेज के नीचे से अच्छी तरह झाडू लगाए। आजकल काम बहुत गंदा करने लगी है और ना ही उसका कोर्इ समय है आने का…..जब मन आता है चली आती है।  ठीक है, मैंने कहा और फिर दुबारा सवाल हल करने लगा।

 

 

 boy studing  photo

Photo by woodleywonderworks

तभी फिर आवाज आर्इ कि शायद गैस वाला भी आ जाए। गैस चैक करके ही रखवाना। आजकल ये लोग गड़बड़ी बहुत करने लगे हैं। मैंने फिर आवाज देकर कहा, ठीक है, देख लूंगा। और फिर सिर खुजलाने लगा क्योंकि मैं सवाल हल नहीं कर पा रहा था।

इतने में मम्मी तैयार होकर आर्इ और कहने लगी कि तौलिया धूप में डाला है। अगर बरसात हो जाए तो अंदर ले आना। और हां, नीतू की मम्मी का फोन आएगा रेखा आंटी का नम्बर लेने के लिए। डायरी में आर के आगे उनका टेलिफोन नंबर लिखा है, बता देना।
पापा बाहर जाकर गाड़ी स्टार्ट करने लगे और मम्मी जाते-जाते मुझे हिदायत देने लगी कि टेलिविज़न बिल्कुल मत देखना। पढ़ार्इ के लिए घर रूके हो तो पढ़ार्इ ही करना, फिर थोड़ा-सा रूककर मम्मी बोली- Þशाम को पांच बजे कर्इ बार पानी इतना तेज आता है कि छत वाली टंकी से पानी गिरने लगता है। मोटर के पास वाल्व को उलटा घुमा देना, पानी गिरना बंद हो जाएगा। खाना और नमकीन रसोर्इ में रखा है, मन करे तो खा लेना।
मेरा सिर वैसे ही इतने काम सुनकर चकरा रहा था। मैंने मम्मी को आवाज देकर पूछा कि क्या वो पांच मिनट रूक सकती हैं क्योंकि अब मैंने भी उनके साथ शादी की पार्टी में जाने का मन बना लिया है। मम्मी बड़बड़ाती हुर्इ पापा को बताने चली गर्इ कि मैं भी साथ चल रहा हूं। मम्मी तैयार होने में मेरी मदद कर रही थी और गुस्से में बोल रही थी- जल्दी-जल्दी तैयार हो जाओ।

पर मैं मुस्कुरा रहा था क्योंकि बात सिर्फ दो-तीन घंटों की ही है। घर पर इतने कामों में तो मेरी पढ़ार्इ होने से रही। दो घंटों बाद वापिस आ ही जाएंगे तो आराम से कमरा बंद करके पढ़ार्इ कर लूंगा।

पापा ने गाड़ी स्टार्ट कर दी थी और मैं भाग कर मम्मी के साथ गाड़ी में बैठ गया।

कैसी लगी आपको मेरी कहानी जरुर बताईएगा 🙂

June 25, 2015 By Monica Gupta

मैं हूं मणि

(बाल कहानी)   मैं हूं मणि

ऐसी ही हूँ मैं…

सुबह का समय……! मैं यानि मणि, स्कूल जाने के लिए तैयार हो रही हूँ पर मैंने जुराबें कहां रख दी मिल ही नही रही। बेल्ट भी देखने के लिए पूरी अलमारी छान मारी पर जब मम्मी मेरा स्कूल बैग ठीक करने लगी तब देखा उसी बैग में बेल्ट पड़ी थी। एक जुराब ना मिलने से अलमारी से दूसरा जोड़ा निकाल कर दिया। मेरा कमरा ऐसा हो रहा था मानो अभी-अभी भूकम्प आया हो। वैसे यह आज की बात नहीं है। मैं ऐसी ही हूँ। कमरा साफ-सुथरा रखना मेरे बस की बात नहीं………… वैसे मैं अभी तीसरी कक्षा में ही तो हूँ।

फिर पढ़ार्इ के अलावा मुझे पता है कितने काम होतें हैं….. गिनवाऊँ……… ओ.के. गिनवाती हूँ। पापा के पैरों पर खड़े होकर उन्हें दबाना, मम्मी की टेढ़ी-मेढ़ी चोटी बनाना, मटर छीलते समय उन्हें खाना ज्यादा डि़ब्बे में ड़ालना कम…….और….और…. पापा के हाथों व पैरों की उंगलियां खींचना, दादाजी की पीठ पर कंधे से खुजली करना…….ऊपर से पढ़ार्इ….पढ़ार्इ और पढ़ार्इ……….. है ना कितना काम। ओफ………..बस का हार्न बजा………… लगता है मेरी स्कूल बस मुझे लेने आ गर्इ है……….।

दोपहर के दो बजे मैं स्कूल से लौटती हूँ। उस समय मुझे अपना कमरा चमकता-दमकता मिलता है। यही हर रोज होता है।

हर सुबह मेरी तलाश, खोजबीन जारी रहती है और मम्मी मेरी हमेशा सहायता करती है क्योंकि ऐसी ही हूँ मैं…..। एक दिन मम्मी को कहीं जाना था तो मम्मी ने मुझे सुबह ही घर की डुप्लीकेट चाबी थमा दी। चाबी अक्सर मैं गुम कर देती हूँ इसलिए मम्मी मेरे गले में पहने काले धागे में चाबी ड़ाल देती हैं इससे चाबी गुम नहीं होती। मैं स्कूल से लौटी तो घर पर ताला लगा था। मैंने घर खोला और अंदर से बंद कर लिया। मम्मी मुझे हिदायत देकर गर्इ थी क्योंकि हमारे शहर में चोरियां बहुत हो रही थी।

हमेशा की तरह मैंने साफ-सुथरे घर को गंदा कर दिया। स्कूल बैग जमीन पर पटका। बेल्ट कहीं, जुराबें कहीं और कौन सी ड्रेस पहनूं के चक्कर में सारी अलमारी अस्त-व्यस्त कर दी। ड्रेस मैंने निकाली पर अलमारी बंद नहीं की क्योंकि ऐसी ही हूँ मैं।

फि्रज में से कोल्ड़ डि्रंक निकाला और ठाठ से लेट कर टीवी देखने लगी। बार-बार चैनल बदले जा रही थी। क्योंकि मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या देखूं और क्या न देखूं। फिर मम्मी की ड्रेसिंग टेबल वाली दराज खोल कर बैठ गर्इ कि मम्मी की सारी चूडि़यां, बिन्दी ठीक कर के लगाती हूँ। इसी बीच घर की लाइट चली गर्इ। मैं बोर होने लगी। मम्मी अभी आर्इ नही थी। मैंने सोचा कि घर बंद करके अपनी सहेली सुधा के यहां चली जाती हूँ। फिर मैंने घर ढंग से बंद किया और सुधा के घर गुडि़या-गुडि़या खेलने चली गर्इ ।

शाम हो गर्इ थी। मम्मी को सुधा की मम्मी से कुछ काम था इसलिए वो बाजार से सीधा ही सुधा के घर आ गर्इ। मुझे वहां खेलते देख उन्होंने गुस्सा किया कि पढ़ार्इ कब करूंगी और पापा भी बेचारे दफ्तर से आ गए होंगे और बाहर ही खड़े गुस्सा हो रहे होंगे।

मैं खेल भूल कर तुरन्त मम्मी के साथ घर चल पड़ी। घर गर्इ तो बाहर पापा और उनके दोस्त परेशान से खड़े थे। पापा ने बताया कि वह पाँच मिनट से बाहर खड़े हैं। घर का ताला तो बंद है पर अंदर से हल्की-हल्की आवाजें आ रही है। पीछे की खिड़की भी खुली है। वैसे पड़ोस के जैन साहब ने बताया कि उन्हाेंने पुलिस को फोन भी कर दिया है। पापा गुस्से से मुझे ही घूरे जा रहे थे। सभी अंदाजा लगा रहे थे कि पता नहीं, भीतर कितने लोग हैं।

पुलिस भी आ गर्इ। मम्मी ने घर की चाबी पुलिस वालों को दे दी। दोनों पुलिस वालों ने दरवाज़ा धीरे से खोला और धीरे-धीरे कमरे में प्रवेश किया। भीतर वाले कमरे से हल्की-हल्की रोशनी व आवाजें भी आ रही थी। एक पुलिस वाले ने भीतर से बाहर आकर यह रिर्पाट दी।

मेरी मम्मी भी पूरी तरह से घबरा गर्इ। पता नहीं क्या हो रहा होगा। तभी दूसरे वाला पुलिस मैन बाहर अपनी बन्दूक लेने आया तो उसने बताया कि भीतर का कमरा बिल्कुल फैला हुआ है। ऐसा लग रहा है मानो पूरी खोजबीन की हो। पांव तक रखने की जगह नहीं है। मैं तो बिल्कुल ही रूआंसी हो गर्इ। पापा-मम्मी दोनों मुझे गुस्से से देख रहे थे। आसपास के पड़ोसी भी इकटठे हो गए। चारों तरफ फुसफुसाहट हो रही थी।
तभी भीतर गए पुलिस वाले ने मेरे पापा को आवाज देकर भीतर बुलवाया। पिताजी ड़रते-ड़रते अन्दर गए फिर उन्होंने मेरी मम्मी और मुझे आवाज दी। हम दोनों भी अंदर गए। अन्दर जाकर देखा तो भीतर कोर्इ नहीं था। सिर्फ पापा और दो पुलिस वाले थे और हां कमरे में टीवी जरूर चल रहा था।
मुझे याद आया कि टीवी तो मैं चलता ही भूल गर्इ थी। बिजली चले जाने के कारण मुझे टीवी को बंद करना ध्यान ही नही रहा।

पुलिस वाले अंकल पापा को कह रहे थे कि वह तो इतना बिखरा कमरा देख कर हैरान थे और सोच रहे थे कि इतना तो चोर ही चोरी करते वक्त कमरा फैला कर जाते हैं।

पापा-मम्मी मेरी तरफ घूर कर देख रहे थे। मुझे एक तरफ तो खुशी थी घर में चोर नहीं है लेकिन पुलिस वालों के आगे मुझे बहुत बेइज्जती महसूस हुर्इ क्योंकि वह सारा कमरा तो मैंने ही फैलाया था…….। पुलिस अंकल मुझ से पूछने लगे कि क्या मैंने ही यह कमरा फैलाया है।

 

cute little girl photo

मैं जोर से रो पड़ी और कहने लगी कि प्लीज़ अंकल आप मेरी शिकायत किसी से मत करना। सारी गलती मेरी थी। मैं ऐसी ही हूँ। स्कूल से आकर सारा कमरा फैला देती हूँ। फिर टीवी देखते-देखते लाइट चली गर्इ। मैंने खिड़की खोल दी पर…. घर पर बोर हो रही थी तो मैं बिना खिड़की, टीवी बंद किए ही सुधा के घर खेलने चली गर्इ। पर बाहर से ताला जरूर लगा गर्इ।

पुलिस वाले अंकल ने बताया कि फिर शाम हुर्इ, अंधेरा हुआ तो टीवी की हल्की-हल्की आवाज और कम ज्यादा होती रोशनी से ऐसे लगा कि घर पर कोर्इ है और खुली खिड़की देख कर तो मन का शक पक्का हो चला। मैं रो रही थी। पर मुझे सबक मिला चुका था। मैंने मम्मी-पापा और पुलिस अंकल से वायदा लिया कि मैं आगे से ऐसा नहीं करूंगी। कमरा ठीक रखूंगी। दो-तीन दिन बाद फिर वही रोज मर्रा की तरह कमरा फैलाना शुरू हो गया क्योंकि…….. ऐसी ही हूँ मैं…….. है ना!

 

कैसी लगी आपको ये कहानी जरुर बताईगा 🙂

मैं हूं मणि

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