Monica Gupta

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April 14, 2018 By Monica Gupta Leave a Comment

Importance of Moral Values – बच्चों को दें अच्छे संस्कार – Moral Values for Kids

Importance of Moral Values – बच्चों को दें अच्छे संस्कार – Moral Values for Kids –  कड़वी सच्चाई – कई बार कुछ बातें हमारे दिल और दिमाग पर गहरा असर डालती है और हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती हैं और कई बार हमें खुद ही कुछ ऐसा लिखना पडता है लोगो की सोच में सकारात्मक बदलाव आए..

Importance of Moral Values – बच्चों को दें अच्छे संस्कार – Moral Values for Kids

बात कुछ समय पहले की है.. अपने आसपास की एक बात से प्रेरित होकर मैने एक कहानी या यू कहिए कि एक कड़वी सच्चाई लिखी. कुछ समय तक उसे रखा भी पर मन नही माना और उसका अंत बदल दिया… चलिए आज मैं आपको अपनी लिखी कहानी सुनाती हूं और क्या और किसलिए  बदलाव किया ये भी बताती हूं ..

 

तो कहानी कुछ ऐसे थी कि एक परिवार जिसमे पति पत्नी और  तीन बच्चे कुछ दिन बाहर छुट्टी बिता कर देर रात अपने घर पहुंचे.. सारे होटल ढाबे बंद हो चुके थे सब थकावट से भी चूर थे पर भूख लग रही थी जबरद्स्त..

पत्नी ने ये महसूस किया कि बच्चों को बहुत तेज भूख लगी है तो अपनी थकावट की परवाह न करे हुए वो साडी का पल्लू खोस कर बालो का जूडा बना कर किचन की ओर लपकी… बच्चों और पति को बोला कि आप सब फ्रेश हो जाओ मैं कुछ खाना तैयार करती हूं

फटाफट आटा गूंथने लगी… पापड की सब्जी बहुत जल्दी बन जाती है इसलिए उसने वो बना ली और खुशी खुशी आवाज दी कि आज जाईए खाना लगा दिया है… वो चारो भी एक ही आवाज में आ गए..

अपनी थकावट भूल चुकी पत्नी बहुत उत्साह के साथ परांठी बना कर सर्व करने लगी… खाना बनाती गई और सब खाने में जुट गए… जैसे जैसे बच्चों का पेट भरता गया वैसे वैसे नुक्स निकलने शुरु हो गए कि सब्जी की करी ज्यादा पतली है तो दूसरे ने कहा कि हां, नमक भी तेज है… पति ने भी कहा कि परांंठी खस्ता नही बन रही..

ज्यादा मजा नही आ रहा और एक एक करके सब उठने लगे… पत्नी समझ गई थी कि अब सभी का पेट भर चुका है इसलिए नुक्स निकाले जा रहे हैं…

कुछ देर बाद बर्तन समेट कर उसने रसोई मे रख दिए उसका खाने काम मन भी नही किया शायद थकावट बहुत ज्यादा महसूस कर रही थी… शारीरिक भी और उससे भी ज्यादा मानसिक…  और वो चुपचाप ही बिना खाना खाए सो गई…

ये लिखी थी कहानी… फिर लगा कि बेशक, ये आज का सच है… इस कहानी को पढ कर क्या मिलेगा… सिर्फ यही की हां ये ही आज की सच्चाई है…

पर अगर कोई मतलब निकले तो जरुर फर्क पडेगा…

फिर मैंनें कहानी में कुछ इस तरह से बदलाव किया.. शुरु में कहानी वैसे ही रही… बात शुरु होती है जब पत्नी ने खाना लगा दिया.. चारो को आवाज दी…

चारोंं आ भी गए और टूट पडे क्योकि बहुत तेज भूख जो लगी हुई थी…  जैसे जैसे पेट भरने लगा तो आपस में बात करने लगे… एक बेटा बोला मजा नही आ रहा करी ज्यादा पतली है…. तो दूसरे ने कहा कि नमक भी तेज है… पति भी वहीं बैठे बातें सुन रहे थे…

पति ने बच्चों को बोला कि आप ऐसा नही बोलेंगें और चुपचाप खाना खाओगें आपको पता है कि आपकी तरह मम्मी भी बहुत थकी हुई है… फिर भी उनकी हिम्मत देखो की एक शिकन भी नही है माथे पर और फटाफ़ट रसोई में चली गई खाना बनाने के लिए…

हम मे से किसी ने उनकी हेल्प करवाई…  नही….  उल्टा नुक्स निकालने शुरु कर दिए…

चुपचाप खाना खाईए अच्छा लगा तो जरुर बोलिए नही अच्छा लगा तो चुपचाप खाईए… पर मम्मी की फीलिंग्स का ख्याल रखते हुए कोई कमी नही निकालेगा..

बच्चों को बात समझ आ गई उन्होने खाना भरपेट खाया और खा कर अपनी अपनी प्लेट किचन मे रखी और मम्मी को  कहा कि इतना थके होने के बाद भी आपने इतना काम किया और इतना टेस्टी खाना बनाया… उन्हें गुड नाईट किया और सोने चले गए..

सबने पेट भर के खाया इसी खुशी में उसने अपने लिए भी दो परौठी बना ली.. खाना खाया और फिर सभी सोने की तैयारी करने लगे..

तो क्या फर्क लगा… पहले लिखे एंड से शायद न कोई सबक मिलता न कोई सीख क्योकि यही होता आया है… और यही होता रहेगा… पर अगर हम ही बच्चों में अच्छे संस्कार डालेगें उन्हें बडो का आदर मान , भावनाओं की कदर करना सीखाएगें  तो न सिर्फ बच्चों का भविष्य अच्छा होगा बल्कि परिवार का वातावरण भी खुशनुमा होगा…

वैसे आप बताईए कि आप क्या सोचते हैं कि क्या घर परिवार में बच्चों को संस्कार देने चाहिए या दूसरे की कमी निकाल कर उसे आहत करना चाहिए… जरुर बताईएगा !

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