Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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June 25, 2015 By Monica Gupta

Acting

children playing  photo

Photo by Christina Spicuzza

(बाल कहानी) Acting

टोटके हिचकी के

मैं हूँ मणि। वैसे तो मैं आठवीं कक्षा में पढ़ती हूँ। पर सब मुझे दादी अम्मा कहतें हैं। मैं सभी की मुसीबतें पल भर में भगादेती हूं या  फिर किसी ने शरारत से किसी के कपड़ों पर स्याही छिड़क दी या सार्इकिल स्टैंड़ से किसी ने सार्इकिल की हवा निकाल दी कर उसे गिरा दिया हो तो सभी सिर्फ मेरे पास भागे चले आते और मैं अपने काम में जुट जाती। वैसे यह सब मैंने अपनी मम्मी और दादी मां से सीखा है। हम संयुक्त परिवार में रहते हैं न इसलिए मैं सभी बातों का ध्यान रखती हूँ। मेरी दादी तो सुबह.शाम लोगों की परेशानिया ही दूर करती रहती है। घर में तो मेरा रोब नहीं चलता पर स्कूल में बड़ी स्मार्ट बनती हूँ। किसी की दोस्ती करवानी हो या फिर पक्की कुÍा, मैं सभी कामों में एकदम एक्सपर्ट हूँ।

एक बार की बात है। मैं, मीशू और नोनू खेल रहे थे। सन्नी तो खेल कर चला गया था। सामी अभी तक आया नहीं था। आकाश में बादल से आ गए इसलिए मैंने सोचा कि जल्दी घर चलतें हैं, हम पार्क से निकल ही रहे थे कि सामी आ गया। वो हमारा पड़ोसी है, पढ़ता तो मेरी कक्षा में है पर स्कूल दूसरा है। उस समय उसे हिचकी आ रही थी। वो खेलना चाह रहा था लेकिन मैंने मना कर दिया। उसने मुझसे कहा कि तुम तो ऐसे भाग रही हो जैसे काला कुत्ता देख लिया हो।

मैंने उससे कहा कि काला कुत्ता तो नहीं पर एक काली गाड़ी जरूर देखी है। सामी बोला. काली (हिचकी) कार। मैंने पूछा पहले तू बता कि हिचकी कैसे आ रही है। वो बोला घर के (हिचकी) बाहर चने वाला (हिचकी) खड़ा था उसमें (हिचकी) मसाला बहुत तेज था बस…. हिचकी (हिचकी) लग गर्इ (हिचकी) अब बताओ…….. (हिचकी) मैंने बोला हम अभी जब खेल रहे थे तो हमने देखा कि एक बहुत सुंदर लड़की रोती हुर्इ गाड़ी में बैठी है। मुझे लगा कि शायद वो तुम्हारी कक्षा की दीपा है। सामी बोला.दीपा…. (हिचकी) कटे हुए थे। मैंने कहा हां-हां। वो बोला कि दो काले कपड़़े पहने अंकल उसे गाड़ी में बैठा रहे थे, शायद उठा कर न ले जा रहे हों। सामी का मुंह खुला ही रह गया (हिचकी) तुम्हारा मतलब……………. किड़नैप। मैंने भी गर्दन हिला दी। वो उतावला हो उठा। बोला (हिचकी) चलो जल्दी चलते हैं (हिचकी) कहीं पुलिस की पहुंच से दूर हो गये तो…… मैंने भी जल्द बाजी दिखार्इ और पार्क के बाहर सामी के साथ मीशू और नोनू भी लपक लिए।

सामी ने मुझसे पूछा, तुम्हें पुलिस स्टेशन का पता है ? मैंने कहा हां.हां। चलो जल्दी चलें। सामी नाराज हो गया बोला दीपा किड़नैप हो गर्इ है और तू हँस रही है। मैंने हँसते हुए कहा बुद्धु। कोर्इ किड़नैप विड़नैप नहीं हुआ है बस……………. तेरी हिचकी रोकने का नाटक था। सामी हैरानी से खड़ा का खड़ा रह गया। मैंने कहा ये था…………… शाक टि्रटमेंट। जब हिचकी रोकनी हो तो ध्यान दूसरी ओर लगा देते हैं जिससे हिचकी रूक जाती है। अब माहौल थोड़ा हल्का हो गया था।

हम सब मिलकर हँसने लगे और सड़क पार करने लगे। सामी ने बताया कि यही चने वाला है पर इसके चने है बहुत स्वादिष्ट। हम चारों ने मिलकर चने खाए। सामी अभी तक हैरान था कि मैं कितनी बातूनी हूँ और  Acting भी अच्छी कर लेती हूँ। तभी मुझे उसमें मसाला इतनी तेज लगा कि मुझे ही हिचकी लग गर्इ। सामी, मीशू, नोनू हंसने लगे कि अब Acting बंद करो। लेकिन मैंने कहा कि मुझे (हिचकी) सचमुच हिचकी लग गर्इ (हिचकी) हैं। तभी सामी बोला कि मेरे पीछे काला कुत्ता खड़ा है। उसे पता था कि मैं काले कुत्ते से बहुत ड़रती हूँ पर मैंने कहा मुझे (हिचकी) मेरी (हिचकी) तू मजाक कर (हिचकी) रहा है ताकि मेरी हिचकी रूक जाए। हंसते-हंसते मैंने पीछे मुड़कर देखा तो मेरी सांस ऊपर की ऊपर अटकी रह गर्इ। यह सचमुच का शाक (झटका) था।

मेरी हिचकी का तो पता नहीं पर जो मैं वहां से दौड़ी मैंने सांस घर आकर ही लिया। मीशू, नोनू और सामी दूर खड़े मुझे देखकर हाथ हिला रहे थे और मैं दिल की धड़कनों को काबू में रखकर उन्हें बाय कर रही थी। वैसे एक बात बता दूं मेरी दादी और मम्मी कुत्तों से बिल्कुल नहीं डरती पर पता नहीं इन कुत्तों को देखकर मेरी घिग्घी क्याें बंध जाती है। अंदर पहुंची तो दादी किसी से बतिया रही थी। मैं भी दादी के साथ बैठकर उनकी बातों में हामी भरने लगी और यह सोचने लगी कि क्या बहाना लगाऊंगी कि मैं क्यों भागी ताकि मेरे दोस्तों के बीच कल मेरा मजाक ही न बन पाए।

तो नन्हें  दोस्तो.  कैसी लगी आपको  Acting   कहानी जरुर बताना 🙂

June 25, 2015 By Monica Gupta

काम ही काम

(बाल कहानी ) काम ही काम

मैं हूं गोलू। पता है अभी-अभी पांचवीं कक्षा में आया हूं। बाप रे….बहुत पढ़ार्इ है। स्कूल से वापिस आने के बाद बस…….पढ़ते रहो…….पढ़ते रहो……!! एक दिन बरसात बहुत तेज हो रही थी इसलिए मैं उस दिन स्कूल नहीं गया। उसी दिन हमारी टीचर ने गणित के दो पाठ पढ़ा दिए। अगले दिन स्कूल जाने पर पता चला तो बहुत दु:ख हुआ क्योंकि टीचर से पढ़े बिना गणित के पाठ को समझना बहुत कठिन था। मैं परेशान इसलिए हो गया था कि टीचर ने अगले दिन उसका टेस्ट लेना था। उधर पापा-मम्मी के साथ मुझे किसी अंकल की शादी में भी शामिल होना था। पर पढ़ार्इ की वजह से मैंने शादी में जाने सेे मना कर दिया क्योंकि मैंने मन ही मन ठान रखी थी कि वो सवाल तो मैं हल करके ही रहूंगा। मम्मी ने मुझे लालच दिया कि वहां फलूदा आर्इसक्रीम होगी, गोलगप्पे होंगे, पाव-भाजी होगी, पर मेरे मन में तो गणित के सवाल घूम रहे थे सो मैंने शादी में जाने से मना कर दिया।

मम्मी पहले तो मुझे साथ में जाने के लिए मनाती रही पर मेरे बार-बार मना करने पर तो गुस्सा ही हो गर्इ और गुस्से में बोली, ठीक है……..नहीं जाना तो मत जाओ। मम्मी दूसरे कमरे में तैयार होने लगी। पापा ने भी तैयार होना शुरू कर दिया। मैं सवाल हल करने में जुट गया। तभी मम्मी की आवाज आर्इ। वह बोल रही थी कि बार्इ आने वाली होगी। उसे कहना कि मेज के नीचे से अच्छी तरह झाडू लगाए। आजकल काम बहुत गंदा करने लगी है और ना ही उसका कोर्इ समय है आने का…..जब मन आता है चली आती है।  ठीक है, मैंने कहा और फिर दुबारा सवाल हल करने लगा।

 

 

 boy studing  photo

Photo by woodleywonderworks

तभी फिर आवाज आर्इ कि शायद गैस वाला भी आ जाए। गैस चैक करके ही रखवाना। आजकल ये लोग गड़बड़ी बहुत करने लगे हैं। मैंने फिर आवाज देकर कहा, ठीक है, देख लूंगा। और फिर सिर खुजलाने लगा क्योंकि मैं सवाल हल नहीं कर पा रहा था।

इतने में मम्मी तैयार होकर आर्इ और कहने लगी कि तौलिया धूप में डाला है। अगर बरसात हो जाए तो अंदर ले आना। और हां, नीतू की मम्मी का फोन आएगा रेखा आंटी का नम्बर लेने के लिए। डायरी में आर के आगे उनका टेलिफोन नंबर लिखा है, बता देना।
पापा बाहर जाकर गाड़ी स्टार्ट करने लगे और मम्मी जाते-जाते मुझे हिदायत देने लगी कि टेलिविज़न बिल्कुल मत देखना। पढ़ार्इ के लिए घर रूके हो तो पढ़ार्इ ही करना, फिर थोड़ा-सा रूककर मम्मी बोली- Þशाम को पांच बजे कर्इ बार पानी इतना तेज आता है कि छत वाली टंकी से पानी गिरने लगता है। मोटर के पास वाल्व को उलटा घुमा देना, पानी गिरना बंद हो जाएगा। खाना और नमकीन रसोर्इ में रखा है, मन करे तो खा लेना।
मेरा सिर वैसे ही इतने काम सुनकर चकरा रहा था। मैंने मम्मी को आवाज देकर पूछा कि क्या वो पांच मिनट रूक सकती हैं क्योंकि अब मैंने भी उनके साथ शादी की पार्टी में जाने का मन बना लिया है। मम्मी बड़बड़ाती हुर्इ पापा को बताने चली गर्इ कि मैं भी साथ चल रहा हूं। मम्मी तैयार होने में मेरी मदद कर रही थी और गुस्से में बोल रही थी- जल्दी-जल्दी तैयार हो जाओ।

पर मैं मुस्कुरा रहा था क्योंकि बात सिर्फ दो-तीन घंटों की ही है। घर पर इतने कामों में तो मेरी पढ़ार्इ होने से रही। दो घंटों बाद वापिस आ ही जाएंगे तो आराम से कमरा बंद करके पढ़ार्इ कर लूंगा।

पापा ने गाड़ी स्टार्ट कर दी थी और मैं भाग कर मम्मी के साथ गाड़ी में बैठ गया।

कैसी लगी आपको मेरी कहानी जरुर बताईएगा 🙂

June 25, 2015 By Monica Gupta

मैं हूं मणि

(बाल कहानी)   मैं हूं मणि

ऐसी ही हूँ मैं…

सुबह का समय……! मैं यानि मणि, स्कूल जाने के लिए तैयार हो रही हूँ पर मैंने जुराबें कहां रख दी मिल ही नही रही। बेल्ट भी देखने के लिए पूरी अलमारी छान मारी पर जब मम्मी मेरा स्कूल बैग ठीक करने लगी तब देखा उसी बैग में बेल्ट पड़ी थी। एक जुराब ना मिलने से अलमारी से दूसरा जोड़ा निकाल कर दिया। मेरा कमरा ऐसा हो रहा था मानो अभी-अभी भूकम्प आया हो। वैसे यह आज की बात नहीं है। मैं ऐसी ही हूँ। कमरा साफ-सुथरा रखना मेरे बस की बात नहीं………… वैसे मैं अभी तीसरी कक्षा में ही तो हूँ।

फिर पढ़ार्इ के अलावा मुझे पता है कितने काम होतें हैं….. गिनवाऊँ……… ओ.के. गिनवाती हूँ। पापा के पैरों पर खड़े होकर उन्हें दबाना, मम्मी की टेढ़ी-मेढ़ी चोटी बनाना, मटर छीलते समय उन्हें खाना ज्यादा डि़ब्बे में ड़ालना कम…….और….और…. पापा के हाथों व पैरों की उंगलियां खींचना, दादाजी की पीठ पर कंधे से खुजली करना…….ऊपर से पढ़ार्इ….पढ़ार्इ और पढ़ार्इ……….. है ना कितना काम। ओफ………..बस का हार्न बजा………… लगता है मेरी स्कूल बस मुझे लेने आ गर्इ है……….।

दोपहर के दो बजे मैं स्कूल से लौटती हूँ। उस समय मुझे अपना कमरा चमकता-दमकता मिलता है। यही हर रोज होता है।

हर सुबह मेरी तलाश, खोजबीन जारी रहती है और मम्मी मेरी हमेशा सहायता करती है क्योंकि ऐसी ही हूँ मैं…..। एक दिन मम्मी को कहीं जाना था तो मम्मी ने मुझे सुबह ही घर की डुप्लीकेट चाबी थमा दी। चाबी अक्सर मैं गुम कर देती हूँ इसलिए मम्मी मेरे गले में पहने काले धागे में चाबी ड़ाल देती हैं इससे चाबी गुम नहीं होती। मैं स्कूल से लौटी तो घर पर ताला लगा था। मैंने घर खोला और अंदर से बंद कर लिया। मम्मी मुझे हिदायत देकर गर्इ थी क्योंकि हमारे शहर में चोरियां बहुत हो रही थी।

हमेशा की तरह मैंने साफ-सुथरे घर को गंदा कर दिया। स्कूल बैग जमीन पर पटका। बेल्ट कहीं, जुराबें कहीं और कौन सी ड्रेस पहनूं के चक्कर में सारी अलमारी अस्त-व्यस्त कर दी। ड्रेस मैंने निकाली पर अलमारी बंद नहीं की क्योंकि ऐसी ही हूँ मैं।

फि्रज में से कोल्ड़ डि्रंक निकाला और ठाठ से लेट कर टीवी देखने लगी। बार-बार चैनल बदले जा रही थी। क्योंकि मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या देखूं और क्या न देखूं। फिर मम्मी की ड्रेसिंग टेबल वाली दराज खोल कर बैठ गर्इ कि मम्मी की सारी चूडि़यां, बिन्दी ठीक कर के लगाती हूँ। इसी बीच घर की लाइट चली गर्इ। मैं बोर होने लगी। मम्मी अभी आर्इ नही थी। मैंने सोचा कि घर बंद करके अपनी सहेली सुधा के यहां चली जाती हूँ। फिर मैंने घर ढंग से बंद किया और सुधा के घर गुडि़या-गुडि़या खेलने चली गर्इ ।

शाम हो गर्इ थी। मम्मी को सुधा की मम्मी से कुछ काम था इसलिए वो बाजार से सीधा ही सुधा के घर आ गर्इ। मुझे वहां खेलते देख उन्होंने गुस्सा किया कि पढ़ार्इ कब करूंगी और पापा भी बेचारे दफ्तर से आ गए होंगे और बाहर ही खड़े गुस्सा हो रहे होंगे।

मैं खेल भूल कर तुरन्त मम्मी के साथ घर चल पड़ी। घर गर्इ तो बाहर पापा और उनके दोस्त परेशान से खड़े थे। पापा ने बताया कि वह पाँच मिनट से बाहर खड़े हैं। घर का ताला तो बंद है पर अंदर से हल्की-हल्की आवाजें आ रही है। पीछे की खिड़की भी खुली है। वैसे पड़ोस के जैन साहब ने बताया कि उन्हाेंने पुलिस को फोन भी कर दिया है। पापा गुस्से से मुझे ही घूरे जा रहे थे। सभी अंदाजा लगा रहे थे कि पता नहीं, भीतर कितने लोग हैं।

पुलिस भी आ गर्इ। मम्मी ने घर की चाबी पुलिस वालों को दे दी। दोनों पुलिस वालों ने दरवाज़ा धीरे से खोला और धीरे-धीरे कमरे में प्रवेश किया। भीतर वाले कमरे से हल्की-हल्की रोशनी व आवाजें भी आ रही थी। एक पुलिस वाले ने भीतर से बाहर आकर यह रिर्पाट दी।

मेरी मम्मी भी पूरी तरह से घबरा गर्इ। पता नहीं क्या हो रहा होगा। तभी दूसरे वाला पुलिस मैन बाहर अपनी बन्दूक लेने आया तो उसने बताया कि भीतर का कमरा बिल्कुल फैला हुआ है। ऐसा लग रहा है मानो पूरी खोजबीन की हो। पांव तक रखने की जगह नहीं है। मैं तो बिल्कुल ही रूआंसी हो गर्इ। पापा-मम्मी दोनों मुझे गुस्से से देख रहे थे। आसपास के पड़ोसी भी इकटठे हो गए। चारों तरफ फुसफुसाहट हो रही थी।
तभी भीतर गए पुलिस वाले ने मेरे पापा को आवाज देकर भीतर बुलवाया। पिताजी ड़रते-ड़रते अन्दर गए फिर उन्होंने मेरी मम्मी और मुझे आवाज दी। हम दोनों भी अंदर गए। अन्दर जाकर देखा तो भीतर कोर्इ नहीं था। सिर्फ पापा और दो पुलिस वाले थे और हां कमरे में टीवी जरूर चल रहा था।
मुझे याद आया कि टीवी तो मैं चलता ही भूल गर्इ थी। बिजली चले जाने के कारण मुझे टीवी को बंद करना ध्यान ही नही रहा।

पुलिस वाले अंकल पापा को कह रहे थे कि वह तो इतना बिखरा कमरा देख कर हैरान थे और सोच रहे थे कि इतना तो चोर ही चोरी करते वक्त कमरा फैला कर जाते हैं।

पापा-मम्मी मेरी तरफ घूर कर देख रहे थे। मुझे एक तरफ तो खुशी थी घर में चोर नहीं है लेकिन पुलिस वालों के आगे मुझे बहुत बेइज्जती महसूस हुर्इ क्योंकि वह सारा कमरा तो मैंने ही फैलाया था…….। पुलिस अंकल मुझ से पूछने लगे कि क्या मैंने ही यह कमरा फैलाया है।

 

cute little girl photo

मैं जोर से रो पड़ी और कहने लगी कि प्लीज़ अंकल आप मेरी शिकायत किसी से मत करना। सारी गलती मेरी थी। मैं ऐसी ही हूँ। स्कूल से आकर सारा कमरा फैला देती हूँ। फिर टीवी देखते-देखते लाइट चली गर्इ। मैंने खिड़की खोल दी पर…. घर पर बोर हो रही थी तो मैं बिना खिड़की, टीवी बंद किए ही सुधा के घर खेलने चली गर्इ। पर बाहर से ताला जरूर लगा गर्इ।

पुलिस वाले अंकल ने बताया कि फिर शाम हुर्इ, अंधेरा हुआ तो टीवी की हल्की-हल्की आवाज और कम ज्यादा होती रोशनी से ऐसे लगा कि घर पर कोर्इ है और खुली खिड़की देख कर तो मन का शक पक्का हो चला। मैं रो रही थी। पर मुझे सबक मिला चुका था। मैंने मम्मी-पापा और पुलिस अंकल से वायदा लिया कि मैं आगे से ऐसा नहीं करूंगी। कमरा ठीक रखूंगी। दो-तीन दिन बाद फिर वही रोज मर्रा की तरह कमरा फैलाना शुरू हो गया क्योंकि…….. ऐसी ही हूँ मैं…….. है ना!

 

कैसी लगी आपको ये कहानी जरुर बताईगा 🙂

मैं हूं मणि

June 24, 2015 By Monica Gupta

अजय का सपना

 

kids story by monica gupta

अजय का सपना बिना मात्रा के मजेदार बाल कहानी है

जब कोई बच्चा नया नया पढना सीखता है तो उसे कहानियां पढने का बहुत शौक होता है पर ज्यादा मात्राओं की समझ  न होने के कारण वो पढ नही पाता  इसलिए मैने कुछ अलग अलग प्रयास किए ताकि वो बच्चे जिन्होने हाल ही मे पढना सीखा है और मात्राए लगाना नही जानते बस आ की मात्रा ही आती है ये कहानी उन बच्चों के लिए है देखिए कैसे फटाफट पढ लेंगें वो ये मजेदार बाल कहानी

अजय का सपना

(वह बच्चें जिन्होनें अभी सिर्फ आ की मात्रा लगाना सीखा है वे यह बाल कथा पढ़ सकते हैं क्योंकि इसमें सिर्फ आ की मात्रा का प्रयोग किया गया है।)

अजय चार साल का नटखट बालक था। अमन उसका बड़ा भार्इ था। अमन समझदार था। वह समय पर पाठशाला जाता। अमन पाठ याद करता पर अजय का जब मन करता तब जाता जब मन ना करता तब बहाना बना कर घर पर ठहर जाता। वह पापा का लाड़ला था। अमन सब समझता था। वह पाठशाला जाता-जाता यह गाना गाता जाता कल बनाना नया बहाना।

एक बार अचानक आवश्यक काम आ गया। माँ तथा पापा कार पर शहर गए। अजय साथ जाना चाह रहा था पर पापा दरवाजा बंद कर बाहर ताला लगा गए। बस, घर पर अजय तथा अमन रह गए।

अमन छत पर समाचार पत्र पढ़ रहा था। उस पर बदमाश तहलका लाल का नाम छपा था। वह तलवार वाला खतरनाक बदमाश था। अजय उसका नाम जानकर ड़र गया। अचानक आसमान पर काला बादल छा गया। घर का दरवाजा खट-खट बज उठा। अजय छत पर ड़रकर खड़ा गाल पर हाथ रखकर पापा-पापा रट रहा था।

यकायक वह बदमाश छत पर आ टपका। उसका रंग एकदम काला था। हाथ पर लाल कपड़ा बंधा था। वह तलवार पकड़ अजय पर लपका तथा हंसा। जब बालक पाठशाला ना जाता, तब हम आता उसका कान काट का जाता, हा! हा! हा!

अजय अचानक ड़र कर मचल गया। वह जाग गया। वाह! वह सब सपना था। अमन पाठशाला जाकर घर आ गया था तथा खाना खा रहा था। बाहर आसमान साफ था। वह माँ, पापा, अजय आवाज लगाता भागा तथा अपना सारा सपना बताया।

अब वह कल पाठशाला जाना चाह रहा था। अमन खाना खाता, मजाक बनाता कह उठा, हाँ……..हाँ कल बनाना नया बहाना पर अजय कह उठा कल बहाना ना बनाऊँगा झटपट उठकर पाठशाला जाऊँगा तथा अपना कान पकड़ कर हँस पड़ा।

अजय का सपना बहुत साल पहले राजस्थान पत्रिका जयपुर से प्रकाशित हुई थी. आप बताओ कि आपको कहानी कैसी लगी !!!

June 24, 2015 By Monica Gupta

बाल कहानी

बाल कहानी

  100रभ की 6तरी

( अंको को शब्दों के साथ जोड़कर कहानी का आनन्द लें)

2पहर के समय बर7 शुरू हो गर्इ। स्कूल से लौटते समय 100रभ ने अपनी कमीज की आस् 3 ऊपर कर ली थी। उसने पिताजी को बहुत बार 6तरी लाने को कहा था पर वो टाल देते थे। आज उसका जन्मदिन है पर उसकी 100तेली माँ ने उसे अभी तक बधार्इ भी नही दी। जब उसने स्कूल में अपने 2स्तों को यह बात बतार्इ तो वह उल्टे ही 100रभ के कान भरने लगे कि 100तेली माँ के आ4-वि4 अच्छे नही होते। वह हमेशा बच्चों में 2ष ही निकालती हैं और अत्या4 करती हैं। कर्इ बार तो उन्हें 6ड़ी से भी पीटती है। कर्इ बार तो बच्चे इतने ला4 हो जाते है कि घर से भागने की 9बत ही आ जाती है।

स्कूल की छुटटी के बाद वह सोचता हुआ जा रहा था कि 100तेली माँ से उसकी कभी अनबन भी नही हुर्इ पर आज उन्होनें बधार्इ क्यों नही दी। क्या वो भी उसे घर से निकाल देंगीं? लगता है, अब तो पिताजी भी उसे प्यार नही करते। 6तरी भी शायद इसीलिए नही लाकर दे रहे हैं। इसी सोच में उसे रास्ते में 1ता दीदी मिली। वो हमेशा वे2 के बारे में अच्छी-अच्छी बातें बताया करती थी। उन्होनें उसके घर का समा4 जाना और 2राहें पर से अपने घर चली गर्इ। वो 6मियाँ राम जी की 2ती थी। उसके और 100रभ के पिताजी बहुत अच्छे 2स्त थे। 1ता दीदी के पिताजी 9सेना में 9करी करते थे और 100रभ के पिता सवार्इ मानसिंह में रोगियों का उप4 करते।

यही सोचते-सोचते उसका घर आ गया और उसने ड़रते-ड़रते दरवाजे़ पर 10तक दी पर दरवाज़ें खुला था। कमरे में किसी की आहट ना पाकर वो चुपचाप अपने कमरे में चला गया। उसकी हैरानी की कोर्इ सीमा नही रही जब उसने अपनी 4पार्इ पर 100गात रखी देखी। 100गात खोलने पर उसमें सुन्दर सी 6तरी मिली। जैसे ही उसने पलट कर देखा तो उसकी माताजी और पिताजी जन्मदिन की बधार्इ ताली बजा कर दे रहे थे। उस समय तीनों की आँखें नम थी।

आज का दिन 100रभ के लिए ढ़ेरो खुशियाँ लेकर आया था। उसे अपनी माँ का प्यार मिला। माँ ने बताया कि शाम को तोहफा देकर चौंका देना चाहते थे। इसीलिए सुबह बधार्इ नही दी। अब उसके मन में कोर्इ शंका नही थी कि मम्मी पापा उसे बहुत प्यार करतें हैं। अपनी नर्इ 6तरी लेकर वो 2स्तों को दिखाने बाहर भागा। बाहर धूप निकल आर्इ थी और सुन्दर सा इन्द्रधनुष सुनहरी 6ठा बिखेर रहा था।

umberella photo

Photo by oatsy40

रोचक बाल कहानी 100रभ की छतरी

राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित हुई कहानी

आपको कैसी लगी … जरुर जरुर बताईगा 🙂

June 24, 2015 By Monica Gupta

एकांत

cartoon lady sitting by monica gupta

कई बार खुद को अकेला छोड देना अच्छा होता है… भीड में तो हम हर समय ही धिरे रहते हैं शोर शराबा दिन भर  के तनाव को और बढा देता है ऐसे में एकांत बहुत जरुरी हो जाता है कई बार खुद से ही  कुछ सवाल करने होते हैं तो कई बार खुद के किए सवालों के उत्तर तलाशने होते हैं जो एकांत में ही मिलते हैं .. एकांत,  किसी समुद्र का किनारा हो सकता है या किसी पार्क में पेड के नीचे हो सकता है या फिर अपने कमरे मे भी हो सकता है. जहां पूरी शांति हो … बडे बडे नेता हो या कोई फिल्मी कलाकार सब एकांत के बहाने खोजते रहते हैं और कई बार उसे छुट्टियों का नाम भी दे देते हैं

कुल मिला कर खुद से बात करना बहुत जरुरी  है…

 

 

  Ranchi Express Online

एकांत व मौन ये दो ऐसे साधन है, जिनका अभ्यास हर व्यक्ति को करना चाहिए। जीवन की विकट परिस्थितियों में जब कोई भी व्यक्ति साथ नहीं देता, मदद नहीं करता, बल्कि विरोध में खड़ा हो जाता है, ऐसी परिस्थितियों में एकांत व मौन उन अस्त्रों के समान होते हैं, जो हमारी रक्षा करते हैं।

एकांत में जहां व्यक्ति, अन्य दूसरे व्यक्तियों के सम्पर्क से बचता है वहीं मौन में वह किसी से कुछ भी बोलता नहीं है। शांत रहता है, केवल देखता है। एकांत व मौन अपने जीवन में शक्ति अर्जन करने के साधन है जिसके माध्यम से हम विरोधी शक्तियों व विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला कर सकते हैं, जब हम किसी से मिलते नहीं है, एकांत में रहते हैं, तो हम स्वयं के सबसे करीब होते हैं। इस समय हमें आत्मचिंतन करने का अधिक समय मिल पाता है।

हम स्वयं के प्रति अपनी क्षमताओं के प्रति आसानी से एकाग्र हो जाते हैं। यद्यपि बाहरी परिस्थितियों द्वारा मिलने वाला तनाव हमें एकाग्र होने से बाधा पहुंचाता है, लेकिन फिर भी एकांत होने पर हमें स्थिर व एकाग्र होने से रोक नहीं सकता। इन परिस्थितियों से निपटने के लिए हमें क्या उपाय करना चाहिए, किस तरह इनका सामना करना चाहिए। हमें क्या-क्या सहायता मिल सकती है और अपनी अतिरिक्त क्षमताओं को बढ़ाने के लिए हमें क्या करना चाहिए। मौन के माध्यम से हम अपनी वाक क्षमता को नियंत्रित करते हैं। हमारे शरीर व मन से अपार ऊर्जा का बहाव होता है, बोलने के द्वारा भी हमारी बहुत सारी ऊर्जा व्यय होती है। यदि हम मौन धारण करते हैं तो इस ऊर्जा को व्यय होने से बचा सकते हैं और इसका सदुपयोग कर सकते हैं। अनर्गल बोलना, अत्यधिक बोलना, चर्चाएं करना आदि इसलिए साधनाकाल में वर्जित है, जितना आवश्यक व उपयोगी है, उतना ही बोलना चाहिए, अन्यथा चुप रहना चाहिए। हमें सार्थक बोलना चाहिए और अधिक सुनना चाहिए। इसलिए परमात्मा ने इस मानव शरीर में दो कान और एक मुंह दिया है, ताकि हम दो कानों से सुने और उसका कम शब्दों में उचित प्रत्युत्तर दें, साथ में अपनी भावाभिव्यक्ति भी करें।

इसके अतिरिक्त यदि हमें कोई अप्रिय व असहनीय कठोर बातें सुनने को मिलती है, तो उन्हें एक कान से सुनो और दूसरे से निकाल दो। उन पर ध्यान न दें, क्योंकि उन पर ध्यान देने का मतलब है स्वयं को दुखी व परेशान करना। कई बात ऐसी बातों को सुनने से व्यक्ति के स्वाभिमान को ठेस पहुंचती है और वह फिर दूसरे के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने वाले कार्य करने लगता है। कठोर बातें, कटुक्ति व्यंग्य आदि सुनने से व्यक्ति का क्रोध व अहंकार जाग्रत होता है, जो उसे दिग्भ्रमित कर सकता है। इसलिए हमें इतना समझदार तो होना ही चाहिए कि हम किस तरह की बातों को ध्यान से सुने। किन बातों पर ध्यान न दें। कैसी वाणी बोले, कितना बोले और क्या बोले, इस संसार में सुनने योग्य वही बातें हैं, जो महापुरुषों ने जीवन के संदर्भ में व्यक्ति के लिए कही है। वहीं बातें हमारा मार्गदर्शन करती है।

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