Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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August 30, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

स्वच्छता का महत्व कितना आवश्यक

स्वच्छ भारत अभियान- स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत

स्वच्छता का महत्व

स्वच्छता की बात करने से पहले हमारे लिए सबसे पहले यह जानना बहुत जरूरी है कि स्वच्छता का महत्व कितना आवश्यक है क्योकि स्वच्छता और पेयजल की कमी से 80 प्रतिशत बीमारियों पैदा होती है और हर साल विश्वभर में 5 साल से कम उम्र के 15 लाख बच्चे मौत का शिकार बनते है.  निश्चित तौर पर यह आंकड़े चौका देने वाले है चाहे हैजा, टाईफाईड, पीलिया, पोलियो, अतिसार, चमडी का चाहे हैजा, टाईफाईड, पीलिया, पोलियो, अतिसार, चमडी का रोग या आखों की बीमारी हो सभी का कारण स्वच्छता का ना होना ही है.

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स्वच्छता और गंदगी

स्वच्छता का महत्व समझते हुए यह जानना जरुरी है कि गन्दगी मुख्य रूप से हमारे शरीर में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जल, मक्ख्यिों, खाने की वस्तुओं और अगुलियों के रूप में प्रवेश करती है। जिसे रोकना और स्वच्छता के प्रति जागरूक होना हमारा कर्तव्य है ताकि स्वस्थ और सुखी जीवन जी सक

सामाजिक प्रतिष्ठा आत्म सम्मान और सबसे ज्यादा महिलाओं और लड़कियों के आराम के लिए स्वच्छता के नियमों को अपनाना बहुत जरूरी है स्वच्छता रहने पर व्यक्ति की सेहत ठीक रहेगी वह हर रोज काम पर जाऐगा जिससे आय के साधन भी बढ़ेगे और जीवन का आनन्द भी लिया जाएगा।

सोच शौच की

शौच से होने वाली बीमारियों के प्रति लोगो की सोच ना के बराबर है.  वो सपने में भी नही सोच सकते कि जो शौच वो घर से बाहर दूर खेत में करके आते है घर आकर वो ना सिर्फ उसे खाते है बल्कि दूसरों को भी खिलाते है.

असल में, होता इस तरह से है कि जब व्यक्ति खुले में मल त्यागता है तो मल पर ढेरो मक्खियां बैठ जाती है वही गन्दगी मक्खियां हमारे भोजन, कपड़े, शरीर ओर पानी पर बैठ कर अपने छः पैरो पर चिपकाए मल को कर उड़ जाती है और अनजाने में व्यक्ति कम से कम 10 से 20 मिली ग्राम मल खा जाता है एक मिलीग्राम मल में एक करोड़ विषाणु होते है और बीमार व्यक्ति के मल में तो असंख्य मात्रा में बीमारी पैदा करने वाले विषाणु जीवाणु, कृमि और उनके अण्डे मौजूद रहते है जिन्हे सूक्ष्मदर्शी यंत्र से ही देखा जा सकता है।

खुले में पड़ा यह शौच पानी, सब्जी, गन्दे हाथो, मिटटी, मक्खी और छोटे-2 अद्वश्य जीवो के माध्यम से होता हुआ स्वस्थ व्यक्तिक पहुंच कर उसे ही अस्वस्थ बना देता है इसके कारण आंतो में कीड़े, पेचिश, दस्त, हैजा, टायफायड, हार्ट-अटैक जैसी गम्भीर और जानलेवा बीमारिया हो जाती है।

यह जानकर बहुत हैरानी होगी कि पोलियो का एक मात्र कारण पोलियोग्रस्त व्यक्ति के मल से ही होता है ये विषाणु सबसे पहले बच्चो को ही अपना शिकार बनाते है।

आकड़े भी बताते है कि गांव के लगभग आधे से ज्यादा आबादी बाहर ही शौच के लिए जाती है। मानले कि अगर एक व्यक्ति एक दिन में 300 ग्राम शौच करता है और प्रतिदिन गांव का हजार आदमी शौच जाता है जब हम गांव की 1 महीने की शौच की गिनती करेगे तो हम पाऐगे कि हर मीने इस गाव में 30 टन (30 दिन 1000 व्यक्ति 300 ग्राम) (लगभग दो ट्रक) शौच की जाती है अगर हम एक साल का अनुमान लगाए तो इससे लगभग 24 ट्रक शौच के भर सकते है। और 10 सालों में 240 ट्रक शौच के भरे जा सकते है।

व्यक्ति द्वारा त्यागा हुआ शौच  जानवरों के खुरो से, बच्चों की चप्पल से, टायरों से, मक्खियों द्वारा वापिस घर पहुंच जाता है और हमारे हाथ द्वारा खाने पीने की चीजो में शामिल हो जाता है इसलिए यह बताने में कोई संकोच नही है कि व्यक्ति शौच ना सिर्फ खाता है एक दूसरों को भी खिलाता है अगर शौच के प्रति इस सोच को जागृत कर दिया जाए तो निश्चित तौर पर शौच के प्रति उसे इतनी घृणा हो जाऐगी और उसकी सोच बदलनी शुरू हो जाऐगी।

असल में, सदियो से खुले में शौच जाने की आदत को छुड़वाना बहुत मुश्किल है ऐसे में गांव के लोगों के पास ढ़ेरो प्रश्न होते है कि हम बाहर जाना किसलिए बंद करे, शौचालय बनवाना आसान नहीं है। जगह भी नही है, शौचालय बनवाने से उन्हे क्या फायदा होगा, और सबसे ज्यादा मुश्किल तो बुर्जुगो को समझाना है।

ऐसे में उनके प्रश्नों का उतर देना उन्हे समझाना बहुत जरूरी हो जाता है ताकि वो संतुष्ट हो जाए और स्वच्छता को अपना ले।

ज्यादातर लोगो की सोच होती है कि वो अपने जीने का तरीका क्यों बदले उससे उन्हे क्या फायदा होगा। तो उन्हे यही समझाना चाहिए कि अच्छी आदत और जीवन को सुखी बनाने के लिए, सम्मान जनक रूप से जीने के लिए और दूसरो के सामने उदाहरण बनने के लिए स्वच्छता को अपनाना ही होगा। इसे अपनाने से स्वास्थ्य सही रहेगा, बीमारियां होगी ही नही, खर्चा कम होगा और आय के साधन ज्यादा बनेगे।

सोच कैसी कैसी … 

कई लोगो का मानना होता है कि सुबह सुबह सैर भी हो जाती है और शौच भी तो इसमें गलत क्या है ? ऐसे में अपनी बहू बेटियों की सुरक्षा का अहसास करवाना चाहिए उन्हे अहसास दिलाना चाहिए कि शर्म के साथ-2 समय का दुरूपयोग होता है। सड़क पर, खेतो में पड़ा मल पैरो व चप्पलों के सहारे घर तक आ जाता है वाशिश के मौसम में या देर सवेर जाने से जंगली जानवरों का निरन्तर खतरा बना रहता है।

बहुत लोग अडियल किस्म के होते है उनके अकसर यही प्रश्न होते है कि उनके पास तो जगह ही नही है या वो तो गरीब है वो इसे बनवाने के लिए रूपया कहा से लाऐगे ऐसे में उन्हे समाझाना चाहिए कि इसके लिए कोई बहुत ज्यादा जंगह की जरूरत नही होती या फिर पड़ोसी या ग्राम पंचायत जमीन दे सकती है ऐसे में सामुदायिक शौचालय का भी निर्माण करवाया जा सकता है या फिर शौचालय का उपरी ढाचा छत पर और गडडा नीचे आगन पर बनाया जा सकता है या फिर दोनों पड़ोसी उपरी ढा़चा अलग अलग बना कर गढ़ढा एक ही रख सकते है इसके साथ साथ पड़ोसी ग्राम हित में अपनी जमीन भी दे सकता है समाधान तो बहुत निकल सकते है बशर्त स्वच्छता को जीवन का महत्वपूर्ण अंग माना जाए

अब बात आती है उनकी गरीबी की बात घूम फिर कर पैसे की गरीबी की नही बल्कि मानसिकता की गरीबी है जिससे जानबूझ कर वो उतरना ही नही चाहते । गरीब लोग शादी के लिए बीमारी के लिए रिश्तेदार में कामकाज शुरू करने पर कर्ज ले सकते है पर शौचालय बनवाने के लिए सरकार का मुंह ताकते है।

शौचालय ना बनवाने की इच्छा वाले बहाने  ढूढ ही लेते है मसलन वो कह देते है कि हम तो मजदूर आदमी है दिहाड़ी पर काम करते है इसे बनवाने में कितना समय लग जाऐगा या फिर पीने का पानी तो है नही इसके लिए कहा से लाऐगे या फिर बदबू की दुहाई देकर किनारा करना चाहते है।

ऐसे में हर बात का जबाव तैयार होना चाहिए. शौचालय बनाना मात्र आधे दिन का भी काम नही है जहां तक पानी की कमी की बात है जितना बोतल में वो भरकर बाहर ले जाते है उतना ही पानी लगता है।

 

स्कूली  स्वच्छता

बच्चे नए विचारों को बहुत जल्दी ग्रहण करते है स्कूल ऐसी संस्था है जहां शिक्षको की मदद से बच्चो के आचार व्यवहार में बहुत जल्दी बदलाव लाया जाता है क्योंकि बच्चों पर अपने शिक्षकों का प्रभाव बहुत ज्यादा पड़ता है इसलिए उन्हे प्रेरित करके शिक्षा के माध्यम से खुले में शौच ना के लिए भली प्रकार समझाया जा सकता है इसके लिए विद्यालय में अभिभावक शिक्षक संध का गठन भी बहुत फायदेमंद रहेगा।

स्कूली बच्चों का योगदान

अगर सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान में बच्चों और स्कूली अध्यापको की बात नही की जाऐगी, तो यह अभियान अधूरा ही रहेगा। अक्सर स्कूली बच्चें अपने अध्यापकों से बहुत प्रेरित होते हैं। अध्यापकों ने स्वच्छता की गम्भीरता को समझते हुए सुबह प्रभात फेरी, रैलियाँ और नारे लगवाएं ताकि बच्चें अपना संदेश घर लेकर जाएँ।

बच्चों के माध्यम से स्वच्छता अभियान बहुत जल्दी फैलता है  क्योंकि बच्चें जब सुबह स्कूल जातें हैं तो आसपास उन्हीं जैसे बच्चें शौच के के लिए बैठे मिल जाते हैं  जिससे उन्हें बहुत बुरा लगता है  और दूसरी बात स्कूल के मैदान में ना तो खेल सकते थे और ना ही भागदौड़ कर सकतें थे क्योंकि वहाँ पड़ी शौच उनके पाँव पर लग जाती थी और जूते, चप्पल के सहारे वो कक्षा तक आ जाती और वहाँ मक्खियाँ ड़ेरा जमा लेती। जहाँ एक ओर बदबू से उनका बैठना मुहाल हो जाता वही दूसरी ओर जो खाना मिड़ डे़ मिल के रूप में परोसा जाता, वहाँ भी स्वच्छता नही रहती। इन सभी परेशानियों को ध्यान में रखते हुए स्वच्छता अभियान स्कूली बच्चों से आरंभ किया जाना चाहिए

महिलाओं का योगदान

बाहर शौच जाने से महिलाए सबसे ज्यादा पीडित हैं क्योकि दिन भर  शौच जा नही सकती और इसलिए अंधेरे में जाना पडता है जहांं जानवरों का खतरा है वहींं आदमियों से भी खतरा बना रहता है … हर रोज कही न कही की खबर छ्पती रहती है कि फलां महिला के साथ बलात्कार हुआ … फलांं बच्ची के साथ बलात्कार  हुआ ..  इसलिए चाहे वो अनपढ हो, धूंधट निकालती हो. अपनी किस्मत पर रोने से बेहतर  है कि घर मे ही शौचालय बना कर इस्तेमाल किया जाए और शर्म के साथ साथ बीमारियों से भी बचा जाए.

वृद्धों का योगदान

बेशक,  गाँव के बडे बूढों को समझाना किसी चुनौती से कम नही … उनकी मानसिकता बदलनी बहुत जरुरी है… और अगर वो समझ गए तो यकीन मानिए  गांव स्वच्छ हो गया… !! उन्हें अपने बच्चों की सेहत का और महिलाओं की सुरक्षा का वास्ता देकर समझाया जा सकता है.

 

स्वच्छता के नारे – Monica Gupta

स्वच्छता के नारे / स्वच्छता पर नारे स्वच्छता हम सभी के लिए बेहद जरुरी है जानते हैं हम सब पर फिर भी मानते नही है और गंदगी फैलाए चले जाते हैं. read more at monicagupta.info

 

स्वच्छता अभियान अगर एक जन आंंदोलन के रुप में चले तो कोई ताकत स्वच्छता आने से नही रोक सकती…

अगर आज आपने अपने पर्स से या बैग  से कुछ निकाल कर सडक पर नही फेंका तो यकीन मानिए आपने आज स्वच्छता अभियान में बहुत बडा योगदान दिया है…

(तस्वीर गूगल से साभार)

August 30, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

स्वच्छ भारत अभियान- स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत

स्वच्छ भारत अभियान- स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत

 मेरे सपनोंं का भारत

स्वच्छ भारत अभियान जोर शोर से चल रहा है.  स्वच्छता और स्वास्थ्य एक दूसरे के पूरक हैं . जन सर्वेक्षण 2017 हो,  जन आंदोलन हो , सम्मान हो, पुरस्कार होंं  या फिल्मी कलाकार  जैसे  कंगना रनावत , अमिताभ बच्चन या विद्या बालन  को स्वच्छता के मैदान में उतारना हो, मतलब स्वच्छता और जागरुकता लाने से है.

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(तस्वीर गूगल से साभार )

 क्या है स्वच्छता और क्या है खुले में शौच से मुक्ति

स्वच्छ भारत अभियान में  स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत का सपना हम सभी देखते हैं .इस बात में कोई दो राय नही कि सरकार ने समय-समय पर योजनाएॅ बनाई और उन्हें लागू किया पर आम जनता तक उनकी आवाज नही पहुँच पाई और वो सरकारी दफ्तरों तक ही सिमट कर रह गई। बेशक, सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के सामान्य जीवन स्तर को बेहतर बनाना, ग्रामीणों को स्वस्थ जीवन देना ताकि वो निरन्तर कामों में जुटे रहें और कार्य स्थल में उनकी अनुपस्थिति ना के बराबर रहें, जल और स्वच्छता से जुडी़ बीमारियों के प्रतिशत को कम करना और स्वच्छता का प्रचार एवं प्रसार करके उनमें स्वच्छ आदतों का विकास करना था पर ऐसा महसूस किया गया कि बिना गावों के लोगों की मदद के यह अभियान नही चलाया जा सकता इसलिए योजना बनाई गई कि सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान को लागू करने के लिए ग्राम पंचायतों, स्वयं सहायता समूहों, साक्षर महिला समूहों, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा वर्कर, अध्यापकों, स्कूली छात्रों, महिला मंड़ल तथा ग्राम स्तर पर सभी सामाजिक कार्यों से जुडे़ लोगों को जोड़ा जाना चाहिए जो कि स्वच्छता के क्षेत्र में रूचि रखते हों।

 

क्या है स्वच्छता का अर्थ

  1. जल का उचित रख रखाव और बर्तावः- हैंड़ पंप और नल से प्राप्त सुरक्षित या उबले/ क्लोरिन युक्त जल का उपयोग करना। जल को सुरक्षित स्थान पर रखना।

 

  1. बेकार पानी की उचित निकासीः- पूरे गाँव की नालियां पक्की बनाना और बेकार जल के निष्पादन की उचित व्यवस्था करना।

 

  1. मानव मल का सुरक्षित निबटानः- व्यक्तिगत, सामूहिक/महिला शौचालय स्कूल प्रांगण व आंगनवाडि़यों में शौचालय का निर्माण एवं उपयोग।

 

  1. कूडा़-कर्कट का सही निपटानः- कूडा़- कर्कट व गोबर को सही प्रकार के गड्ढों में संचित करना।

 

  1. घर की सफाई, सुव्यवस्था एवं सुरक्षित भोजन।

 

  1. व्यक्तिगत सफाईः- शौच के बाद साबुन से हाथ धोना, नाखून काटना, नहाना धोना।

 

  1. सामुदायिक एवं पर्यावरण स्वच्छताः- पूरे गाँव की साफ सफाई एवं वृक्षारोपण

 

सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के उट्ठेश्य

  1. ग्रामीण क्षेत्रों के सामान्य जीवन स्तर को बेहतर बनाना।
  2. ग्रामीण आबादी में स्वच्छता का प्रचार-प्रसार कर स्वच्छ आदतों का विकास करना।
  3. शिक्षा एवं जागरूकता के द्वारा समुदाय में स्वच्छता सुविधाओं की मांग उत्पन्न करना।
  4. विद्यालयों में स्वच्छता सुविधाओं का निर्माण सामुदायिक सहयोग से करना।
  5. कम लागत तथा सार्थक तकनीको को प्रोत्साहित करना।
  6. ग्रामीणों को स्वस्थ जीवन प्रदान करना ताकि कार्यस्थलो पर अनुपस्थिति कम हो सके।
  7. जल और स्वच्छता से जुड़ी बीमारियों के प्रतिशत को कम करना।

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स्वच्छता अपनाने से होने वाले फायदे

ये सबसे अहम है और इसे जान लेना हमारे लिए बहुत जरुरी भी है कि आखिर स्वच्छता से फायदे क्या क्या हैं..

 

  1. कम मृत्यु दर और बेहतर स्वास्थ्य
  2. पैसे की बचत।
  3. उत्पादकता में वृद्धि।
  4. ज्यादा आय के साधन।
  5. आत्म सम्मान- देश का सम्मान

 

और सबसे बड़ी बात तो यह होगी कि स्वच्छता अपनाने से ड़ाक्टरों के चक्कर नही लगाने पड़ेगें जिससे पैसे बचेगें। पैसे बचेगें तो खुशियाँ आऐगी, खुशियाँ होगी तो आय के साधन और बढेगें क्योंकि अक्सर तनाव में रहने से काम नही हो पाता जब तनाव ही नही होगा तो और काम करने को मन करेगा, जिससे आय बढे़गी और आय बढे़गी तो जीवन स्तर में सुधार होगा और फिर देश को आगे बढ़ने से कोई  रोक ही नही सकता।

इतना सब होने पर भी आखिर क्यों नही आ पा रही है स्वच्छता

 

ऽ     साधनों की कमी

ऽ     जन जागरण की कमी

ऽ     स्वच्छता की महत्ता पर कम समझ

ऽ     स्वच्छता को सामाजिक प्रतिष्ठा के साथ न जोड़ा जाना

ऽ     उपभोक्त्ता की पसन्द पर कम ध्यान

ऽ      सरकारी अनुदान की उम्मीद

ऽ     गलत और प्रभावहीन योजना और तरीके

ऽ     संस्थागत ढ़ाचे की कमी

ऽ     बच्चों और महिलाओ की समाज में कमजोर स्थिति

 

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तो क्या  हो रणनीति

 

ऽ     समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करना और समुदाय को नेतृत्व प्रदान करना।

ऽ     जागरूकता अभियान के द्वारा स्वच्छता का प्रसार करना।

ऽ     वैकल्पिक वितरण प्रणाली को मजबूत करना।

ऽ     सरकारी अनुदान पर कम निर्भरता।

ऽ     कार्यक्रम को जन केन्द्रित कार्यक्रम के रूप में कार्यान्वित करना।

ऽ     विद्यालयों को स्वच्छता का एक महत्वपूर्ण घटक मानकर इसे क्रियान्वित करना।

हमें पता है कि

वर्ष 2001 में जनगणना के आधार पर देश भर में ग्रामीण क्षेत्रो में केवल 21.9 प्रतिशत परिवारों को शौचालय सुविधाएँ उपलब्ध थी जबकि हरियाणा में यह प्रतिशत लगभग 28.66 थी। मानवमल खुले में त्यागने से अन्य प्रकार की गन्दगी तथा पीने का साफ पानी न मिलने के कारण हैजा, दस्त, पेचिश, हैपिटाइटिस, मलेरिया, पीलिया और पोलियो जैसी भयंकर और जानलेवा बीमारियों का खतरा मंड़राता रहता और इसी गंदगी की चपेट में महिलाएं और बच्चे आ रहे थे।

वैसे तो ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता सुविधाएं उपलब्ध करवाने हेेतु केन्द्र तथा राज्य सरकार समय-समय पर नित नए प्रयास करने में जुटी हुई थी इसलिए 1986 में भारत सरकार द्वारा केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम की शुरूआत की गई और वर्ष 1999 में भारत सरकार द्वारा “सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान” की शुरूआत की गई। लेकिन सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम से बिल्कुल भिन्न था। क्योंकि यह कार्यक्रम अनुदान आधारित ना होकर समुदाय संचलित, ’जन केन्द्रित’ और मांग जनित कार्यक्रम बना।

इसके अन्तर्गत जनसाधारण को स्वच्छता के प्रति जागरूक करना था ताकि लोग सदियो से चली आ रही खुले में शौच जाने की प्रवृति के नुकसान जान कर सुविधाओं की मांग कर सकें। इस कार्यक्रम में व्यक्तिगत, स्कूल, आंगनवाडि़यों में शौचालय सिर्फ बनाने ही नही बल्कि उसके प्रयोग पर भी बल देना था। हालांकि राज्य सभा सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के प्रति पूर्ण रूप से जागरूक है और वर्ष 2012 का लक्ष्य निर्धारित कर दिया गया है लेकिन इस बारे में प्रयासरत है कि वर्ष 2010 तक ही लक्ष्य को हासिल कर लिया जाए ताकि चारों ओर स्वच्छता ही स्वच्छता हो।

कोई शक नही स्वच्छता आज एक आवश्यकता बन गई है और न सिर्फ गांव में बल्कि शहरों में भी जिस तरह से गंदगी बढती जा रही है उससे दूर करना हमारा परम कर्तव्य होना चाहिए.

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प्रश्नावली –  एक  क्विज स्वच्छता के बारे में 

 

  1. एक गाँव कितने दिन में खुले में मलत्याग सेे मुक्त्त हो सकता हैंः-

1 दिन

2-5 दिन

5-7 दिन

 

  1. खुले में त्याग से मुक्त्ति का अर्थ हैः-

 

शौचालय मुक्त्ति

शौचालय उपयोग

लोग खुले में त्याग बंद करें

 

  1. समुदाय में व्यवहारिक बदलाव लाने के लिए कौन अधिक प्रभावशाली है?

 

स्वयं समुदाय

स्वंय सेवी संस्था

बाहर के लोग

 

4 साधारणतया लोग शौचालय क्यों बनवाते हैं?

 

गोपनीयता के लिए

सुविधा के लिए

स्वास्थ्य कारणों

उपरोक्त सभी

 

5 शौचालय का निर्माण, इसके उपयोग को भी सुनिश्चित करता है।

सत्य

असत्य

 

6 घर में शौचालय होने पर महिलाएँ इसका प्रयोग पुरूषों से ज्यादा करती हैं।

 

सत्य

असत्य

 

7 मानव मल वापस हम तक पहुँचता है?

 

पानी द्वारा

भोजन द्वारा

हवा द्वारा

उपरोक्त सभी माध्यम द्वारा

 

8 निम्न में से क्या अधिक महत्वपूर्ण है?

 

पूरे गाँव में शौचालय का निर्माण

खुले में मल त्याग से मुक्त्ति

दोनों

 

9  निम्न में से कौन सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान का अंग है?

 

ठोस कचरे व प्रदूषित जल का निस्तारण

स्कूल स्वच्छता

आंगनवाढी़ स्वच्छता

व्यक्तिगत स्वच्छता

उपरोक्त सभी

 

10. स्कूल में शौचालय व मूत्रालय का प्रावधान होने से कन्या विद्यार्थियों की संख्या बढ़ जाती है।

 

सत्य

असत्य

 

11. आपके विचार में सम्पूर्ण स्वच्छता के लिए कौन जिम्मेदार है।

 

सरकार

स्वयं सेवी संस्थाएं

समुदाय

उपरोक्त सभी

12. खुले में शौच को रोकने का सही समय है ?

गर्मी

बरसात

सर्दी

तुरंत

13. सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के लिये क्या विधि होनी चाहिए?

 

व्यक्तिगत घर को केंद्रित करना।

सम्पूर्ण गाँव को केंद्रित करना।

 

14. क्या आप मानते हैं कि किसी भी गाँव में सबसे गरीब व्यकित भी शौचालय का निर्माण कर सकता है?

 

हाँ

नही

 

15 लोग खुले में मल त्याग क्यों करतें हैं?

 

शौचालय निर्माण के लिए धन का न होना

शौच के लिए उपलब्ध पर्याप्त खुली जगह

अनुदान मिलने में देरी

स्वच्छता और स्वास्थ्य के मध्य सम्बन्ध का ज्ञान न होना

 

16. मानव और कुत्ते में क्या अंतर है?

 

दोनों खुले में शौच करतें है

कुत्ता शौच के उपरान्त मल को मिट्टी से ढ़क देता है।

दोनों शौच के उपरान्त मल को मिट्टी से ढ़क देते है।

उपरोक्त में से कोई

 

17. खुले में शौच करने की प्रथा की शुरूआत कब हुई?

 

500 वर्ष पूर्ण से

1000 वर्ष पूर्व से

10000 वर्ष पूर्व से

जब से मानव की उत्पति हुई हैं

 

18 खुले में शौच जाने से कौन-कौन सी बीमारियाँ हो सकती है?

 

पोलियो

हैजा

दस्त

उपरोक्त सभी

19 आप सोचते हैं कि जन जन में स्वच्छता आनी चाहिए

हां

नही

स्वच्छता अभियान और मेरे मन की बात – Monica Gupta

क्लिक करिए और सुनिए स्वच्छता अभियान पर 4 मिनट और 35 सैकिंड की ऑडियो… मेरा अनुभव स्वच्छता अभियान और मेरे मन की बात बात स्वच्छता अभियान के दौरान की है. जब गांव गांव जाकर लोगों को जागरुक किया जा रहा था.लोगो को समझाया जा रहा था कि खुले मे शौच नही जाओ आसान नही था क्योकि सदियों से चली आ रही मानसिकता बदलना मुश्किल था. See more…

 

स्वच्छता, हमारे लिए कितनी जरुरी है…  वैसे आपका क्या विचार है स्वच्छता के बारे में .. अगर आज आपने  अपने पर्स से कोई बेकार कागज सडक पर नही फेका तो यकीन मानिए आपने भी आज स्वच्छता में अहम रोल अदा किया है … ऐसा मेरा मानना है !!

(सभी तस्वीर गूगल से साभार )

August 30, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

जरा सोचिये

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जरा सोचिये

Jara Sochiye किसी का गुस्सा किसी पर निकालने में कहां की समझदारी है !! जरा सोचिए कि कही आप भी तो ऐसे नही हैं ना !! 

एक जानकार के घर गई तो वो अपने बच्चे को होमवर्क करवा रही थी और बीच बीच में उसे बहुत बुरी तरह डांट भी रही थी और डांटते हुए बार बार घडी देख रही थी बाद में पता चला कि कामवाली बाई अभी तक नही आई इसलिए उसका गुस्सा अपने बच्चे पर उतार रही थी…
Jara Sochiye अकसर बॉस आफिस में गुस्सा करते हैं तो उनका गुस्सा पति महोदय द्वारा घर आकर पत्नी पर उतारा जाता है.. !!

Jara Sochiye सुबह आफिस के लिए निकलते वक्त देर हो गई तो वाहन तेज चलाएगें और गुस्सा सामने वाले पर निकालेगें कि हार्न सुनाई नही दे रहा क्या … बहरा हो गया !! और और और हमारा सोशल मीडिया भी इससे अछूता नही है ..

Jara Sochiye फेसबुक पर लिखेंगें और कमेंट इक्का दुक्का आने पर सारा कसूर फेसबुक का ही निकालेंगें कि क्या बेकार चीज है ये .. फालतू, खाली पीली टाइम वेस्ट है ये .. !! अरे!! अब इसमें बेचारे फेसबुक की क्या गलती .. इतना ही नही जब फेसबुक पर हैप्पी बर्थ डे की ढेर सारी शुभकामनाएं मिलती है तो भी बौखला जाते हैं कि इतनी सारी बधाई मिल रही है समय ही नही है सभी को थैंक्स कहने का …!!!

क्या हैं आप ऐसे या … ???Jara Sochiye

सोशल साईटस बनाम अनसोशल ऐक्टिविटीज – Monica Gupta

सोशल साईटस बनाम अनसोशल ऐक्टिविटीज Sociale sites / unsocial activities सोशल नेट वर्किंग पर हम कितने सोशल … छेडखानी, पीछा करना, अश्लीलता, तंग करना, अपशब्द  बोलना ,अस्वच्छता , गंदगी सिर्फ असल जिंदगी मे ही नही सोशल मीडिया पर भी होता है और जिसकी वजह से सोशल अनसोशल बन जाता है. एक सहेली का birth day था सोचा … read more at monicagupta.info

 

August 28, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

कडवे प्रवचन और आम आदमी

 

महाराज तरुण सागर जी

कडवे प्रवचन और आम आदमी

Kadve Pravachan / महाराज तरुण सागर जी के कडवे प्रवचन

कुछ समय से महसूस हो रहा है कि सोशल मीडिया पर अगर कोई सच्ची और अच्छी बात के खिलाफ बोलता या आवाज उठाता है तो सोशल मीडिया का बडा तबका उसी के पीछे पड जाता है जोकि अच्छी बात है. जैसा कि जब शोभा डे ने खिलाडियो का मजाक उडाया था तब उनके टवीट की बहुत आलोचना हुई थी..

अब विशाल ददलानी जिन्होने पांच साल केजरीवाल जैसा शानदार गाना आप पार्टी को दिया … वो महाराज तरुण सागर पर विवादित टवीट देकर फंस गए और इस कदर फंस गए कि उन्होने सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने तक की बात बोल डाली… वैसे तरुण महाराज  अपने कडवे वचन और अपने दमदार बोलने के तरीके से बहुत पसंद किए जाते हैं.

 आज न्यूज पर वो बोल रहे थे कि लोकसभा और विधान सभा में खतरनाक लोग मौजूद है 160 एमपी तो ऐसे हैं जिन पर आपाराधिक मामले दर्ज हैं गुंडे, चोर, बदमाश लोक सभा और विधान सभा की सीढी चढ गए हैं … समाज के लिए खतरा हैं …

Vishal Dadlani said he self left aap, he regrets on jain muni tweet – Navbharat Times

जैन मुनि के अपमान के बाद विशाल ददलानी ने जताया खेद, कहा खुद से छोड़ी AAP संगीतकार और गायक विशाल ददलानी ने रविवार को कहा कि उन्होंने खुद ही आम आदमी पार्टी (आप) को छोड़ा है… Read more…

 

बहुत सही कहा और अच्छी बात तो ये हैं कि अभी उन्होनें हरियाणा विधान सभा में विचार रखे थे और अब संसद से भी न्योता मिलने की बात सामने आ रही है… ! वैसे गलत बात बोलने पर आप पार्टी ने त्वरित कार्यवाही की पर क्या अन्य पार्टी भी अपने नेताओ की बदजुबानी पर कुछ ऐसा ही निर्णय लेगी … यक्ष प्रश्न है !

August 28, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

Social sites – Unsocial activities

Social sites – Unsocial activities – सोशल साईटस बनाम अनसोशल ऐक्टिविटीज .. सोचने की बात है कि सोशल नेट वर्किंग पर हम कितने सोशल … छेडखानी, पीछा करना, अश्लीलता, तंग करना, अपशब्द  बोलना ,अस्वच्छता , गंदगी सिर्फ असल जिंदगी मे ही नही सोशल मीडिया पर भी होता है और जिसकी वजह से सोशल अनसोशल बन जाता है.

Social sites – Unsocial activities

एक सहेली का birth day था सोचा फेसबुक पर बधाई दे दूं तो देखा कि उसके पिछ्ले साल के जन्मदिन की पोस्ट सबसे उपर थी यानि पूरे साल कुछ नही किया … ऐसी बात नही है कि उसने फेसबुक चैक  नही किया इक्का दुक्का पोस्ट लाईक की है पर अपना प्रोफाईल अपडेट नही किया… ये सोशल साईट पर अनसोशल ही माना जाएगा.

एक अन्य उदाहरण मे एक महाशय फेसबुक पर खुद को सोशल और बेहद सभ्य दिखाने के चक्कर में महिलाओं को मैसेज पर लगातार  गुड मार्निग और गुड नाईट भेजते हैं पर इसे सोशल होने की केटेगिरी में नही रखा जा सकता.

एक महिला जानकार poke बहुत करती है जब भी ऑन लाईन हो उसका पोक सबसे पहले आता ये भी सोशल होना नही माना जाएगा …

कोई लोग मैसेज के माध्यम से पैसे की मांग करने लगते हैं या नौकरी दिलवाने की … ये भी अनसोशल ही माना जाएगा… जान पहचान हो बातचीत हो तो आगे बढना चाहिए बिना जाने पहचाने …

कई लोग पोस्ट कोई भी अपना कमेंट जरुर पोस्ट करेंगें … अब आप सोच रहे होंगें कि ये तो अच्छी बात है पर असल में, वो पोस्ट से सम्बंधित कमेंट नही करते बल्कि अपनी संस्था की प्रोमोशन ही करते हैं जहां कही मौका मिला उसे पोस्ट कर दिया ये भी अनसोशल है कुछ लोग एक दूसरे की बात काटते है और मजाक बनाते हैं.. इसे अभी सही नही माना जाएगा.

कई बार तो पोस्ट में दूसरों को अपमानित तक कर देते हैं.

कुछ लोग ज्यादा ही सोशल होकर अपने घर की सारी बात इस प्लेटफार्म पर शेयर कर लेते हैं .. चाहे शादी पर जाना हो या घूमने  जाना हो सारी जानकारी दे देते हैंं और ये भूल जातें है कि एंटी सोशल लोग भी हैं और वो हर बात पर नजर रखे हैं!! हर बात को फेसबुक करना सोशल मीडिया पर सांझा करना सही नही है…

 

social network photo

कुछ् लोग बिना सोचे समझे दूसरे की पोस्ट शेयर कर लेते हैं बिना पडताल किए कि कितना सही या गलत है … दूसरे शब्दों में भेड चाल कही जाती है और कई लोग अफवाह भी उडा देते हैं… ये भी अनसोशल ही माना जाएगा.

कुछ लोग महिला बन जाते हैं और लडकी की फोटो लगा कर लडकियों से बात करते हैं जान पहचान बढाते हैं ये बिल्कुल ही अनसोशल है…

अलग अलग पार्टी के गुट भी बन जाते हैं … गुट बने कोई दिक्कत नही पर दूसरे की पार्टी पर अपशब्द, गाली गलौच करना बिल्कुल अनसोशल माना जाएगा ..

सोशल मीडिया तो एक साधन भर है. इसका इस्तेमाल कैसे और किस रूप में करें ये हम पर निर्भर करता है.  ये हमें अर्श पर पहुंचा सकता है तो फर्श पर भी पटक सकता है अगर हमें एक माध्यम मिला है अपनी बात रखने का तो हमें इसे गम्भीरता से, सोच समझ कर पूरे विश्वास के साथ चलना चाहिए.

सोशल मीडिया का ये कैसा अनसोशल चेहरा..!– IBN Khabar

चांदनी ने फेसबुक पोस्ट पर जो लिखा है, उसने समाज में खलबली मचा दी है। बहुत से लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि कोई लड़की अपनी बोली लगाने का ऐसा इश्तेहार कैसे दे सकती है। 31 साल की चांदनी पेशे से मॉडल है, गुजराती फिल्मों-सीरियलों और विज्ञापनों में छोटे-मोटे किरदार निभाती है। लेकिन जब उसके अपने जानने वालों ने उसकी मजबूरियों का फायदा उठा कर उसका शोषण करने की कोशिश की, तो उसने अपने तरीके से समाज को आईना दिखाने की कोशिश की। Read more…

 

सोशल मीडिया सोशल ही बना रहे तो ही अच्छा … अन्यथा !!!

वैसे आपके क्या विचार हैंं इस बारे में … जरुर बताईएगा !!

Social sites – Unsocial activities

 

August 27, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

शुभ मुहूर्त में शिशु जन्म – कितना सही

baby smile

(तस्वीर गूगल से साभार)

शुभ मुहूर्त में शिशु जन्म – कितना सही

गुजरात के विरडिया अस्पताल में 15 टेस्ट ट्यूब बच्चों का जन्म हुआ.

 15 अगस्त  को 15 नि:संतान दंपत्तियों के टेस्ट ट्यूब से 15 बच्चों को जन्म दिया।ट्रिनिटी टेस्ट ट्यूब बेबी सेंटर और विरडिया हॉस्पिटल में 15 अगस्त को 15 महिलाओं की टेस्ट ट्यूब बेबी प्रसूति हुई।  इसके पीछे माना जा रहा है कि  निसंतान दम्पत्तियों मे 15 अगस्त का खास दिन चुना …
मेरे बहुत जानकर है जो इसी तरह  की मंशा रखते हैं कि खास दिन उनका बच्चा इस दुनिया में आए चाहे. 31 दिसम्बर हो या पहली जनवरी या फिर कुछ माता पिता अपनी शादी की सालगिरह या अपने जन्मदिन से भी मिलती जुलती तारीख रखना चाहते हैं…
कुछ कारण यह भी होते है कि ज्यादातर महिलाए सिजेरियन करवाना चाह्ती है क्योकि वो प्रसव के दर्द को सहना नही चाहती…या फिर आज समाज मे देर से हो रहे विवाह या बढती उम्र भी सिजेरियन का कारण बन रही है..
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, सिजेरियन डिलीवरी की दर 15 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए। हालांकि दुनिया भर में यह दर 40 प्रतिशत तक पहुंच गई है, खासकर अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में।
मेरी एक जानकार हमेशा अपना जन्मदिन होली पर मनाती है उनका कहना है कि जब उनका जन्म हुआ उस दिन होली थी इसलिए हर होली पर उनका जन्मदिन होता है.

वैसे हमारी भारतीय संस्कृति में कुछ दिन बहुत खास हैं.. ऐसे बहुत लोग हैं  जो ग्रह, नक्षत्रों का जोग और संयोंग देखते हुए खास दिन का ध्यान रखते हुए बच्चे का जन्म करवाते हैं . खैर, यह उनका नजरिया है.

बच्चा चाहिए खास दिन खास वक्त – Live Hindustan | DailyHunt

30 साल के संतोष बताते हैं कि ‘हमने पहले से यह नहीं सोचा था, लेकिन जब हमें संभावित तारीख के बारे में बताया गया तो हमने सोचा कि 27 जनवरी कहीं बेहतर दिन होगा।’ अपनी पसंद की तिथि को नेहा ‘सी-सेक्शन’ (शिशु को मां के गर्भ से निकालने के लिए सर्जरी की प्रक्रिया यानी सिजेरियन) के लिए दाखिल हुईं। Read more…

15 baby born on 15 august in Surat – www.bhaskar.com

15 baby born on 15 august in Surat Read more…

 

मेरा नजरिया यह है कि बच्चा किसी भी नक्षत्र या ग्रह में जन्म ले अगर उसे अच्छे संस्कार दिए जाए और गर्भावस्था के दौरान मां अच्छी किताबें, तस्वीरे, संतुलित आहार और खासकर उन दिनों सकारात्मक सोच लिए खुद को खुश रखें तो बच्चा अपना नाम स्वय़ ही सार्थक करने मे सक्षम होगा…!!

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